*रमेशचन्द्र चन्द्रे*
मंदसौर ३ अप्रैल ;अभी तक ; अपनी उम्र से बड़े और बूढ़े लोगों का केवल सम्मान ही नहीं करना चाहिए बल्कि उनकी निकटता प्राप्त कर, उन्हें मित्र बनाने से उनका अनुभव और ज्ञान आपके जीवन को ऊंचाई तक पहुंचने में मदद करेगा।
एक बार एक गांव में भयंकर आग लगी, सभी लोग अपनी- अपनी जान बचाकर भागने लगे किंतु उस गांव में एक जवान व्यक्ति था जो कि अंधा था। उसको बिल्कुल दिखाई नहीं देता था, इसलिए वह चाहते हुए भी भाग नहीं पा रहा था। इस गांव में एक बूढ़ा व्यक्ति दोनों पैरों से अपाहिज था किंतु वह दौड़ना तो दूर चल भी नहीं सकता था।
इधर गांव में आग बढ़ती जा रही थी, इनका जलना बिल्कुल सुनिश्चित हो रहा था किंतु अंधे ने कहा कि- बाबा! मैं तो अंधा हूं देख नहीं सकता पर दौड़ तो सकता हूं परंतु तुम देख तो सकते हो पर चल नहीं सकते। यदि हम दोनों एक दूसरे का सहयोग करें और तुम मेरे कंधे पर बैठ जाओ और मुझे रास्ता बताते जाना तो मैं उसी तरफ भागता रहूंगा और हम दोनों इस आग से बच जाएंगे। दोनों में सहमति हो गई और वह बुजुर्ग उस जवान अंधे लड़के के कंधे पर बैठ गया और दोनों गांव के बाहर निकल गए तथा उनकी जान बच गई।
इसका आशय यह है कि जवानी अंधी होती है, यदि उस अंधी जवानी को किसी अनुभवी व्यक्ति का साथ मिल जाऐ, जिसने अपने जीवन में अनेक अनुभव प्राप्त किये है और जवान वरिष्ठ व्यक्ति को सम्मान देकर उसके अनुभव का लाभ ले लें तो वह अपने लक्ष्य को जल्दी प्राप्त कर सकता है। इसलिए बुजुर्गों का सम्मान भी करिए, उनसे मिलना-जुलना बढाएं, उनको मित्र बनाएं और उनके अनुभव से ज्ञान प्राप्त करें तो आपकी प्रगति में कभी बाधाएं खड़ी ही नहीं होगी। इस दिशा वह आपके दादा- दादी, चाचा, मामा, पड़ोसी सहित गांव- शहर में रहने वाले ऐसे लोग, जिन्होंने अपने जीवन में बड़ी-बड़ी सफलताएं हासिल की है, उनके साथ बैठना उठना प्रारंभ कर दीजिए। सफलता तुम्हारे चरण चूम लेगी।