*रमेशचन्द्र चन्द्रे*
मंदसौर २४ मई ;अभी तक ; एक बार होलकर राज्य की महारानी देवी अहिल्याबाई, बद्रीनाथ धाम की यात्रा पर जा रही थी। रास्ते में एक स्थान बहुत समतल दिखाई दिया, वह एक खेत था। उसमें कुछ गायें चर रही थी किंतु अचानक एक व्यक्ति हाथ में डंडा लेकर आय तथा गायों को बुरी तरह पीटने लगा।
यह दृश्य अहिल्याबाई ने अपनी पालकी में से देखा तो उन्हें क्रोध भी आया और गायों पर दया भी आई। वह पालकी से नीचे उतरी तथा अपने क्रोध पर नियंत्रण करते हुए उस आदमी से पूछा कि- तुम इन गायों को क्यों मार रहे हो? तो उसने उत्तर दिया की यह मेरा खेत है यह गायों के चरने की जगह नहीं है।
अहिल्याबाई उसे उसका खेत खरीदने की बात कही तथा उसे खेत की मुंह मांगी कीमत देकर वह खेत खरीद लिया तथा उसे हमेशा के लिए गोचर भूमि घोषित करवा दिया एवं वहां की पंचायत में हमेशा के लिए गोचर भूमि दर्ज करवाई।
उत्तराखंड के चमोली जिले कि उस गोचर भूमि पर आसपास के गांव वाले मुक्त चित्त से गायें चराने लगे जिसके कारण धीरे-धीरे उसके आसपास लोग अपने झोपड़िया और मकान बनाने लगे।
कालांतर में उस स्थान ने एक गांव का रूप ले लिया और अब एक बड़ा शहर बन गया है, जिसका नाम ही गोचर शहर रखा गया है।
उक्त शहर में मिलिट्री का ट्रेनिंग सेंटर एवं एक बड़ा हेलीपैड भी बना हुआ है तथा व्यापार व्यवसाय की दृष्टि से एक संपन्न शहर है।
आज भी उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र में एकमात्र बड़ा समतल मैदान केवल गोचर क्षेत्र में है। अहिल्याबाई के एक अच्छे निर्णय का परिणाम है। धन्य है अहिल्याबाई