महावीर अग्रवाल
मंदसौर १ जून ;अभी तक ; एक महायज्ञ के लिए राजा यशोधर्मन ने गुजरात राज्य के बड़नगर एवं हिमालय की ओर से आए हुए कर्मकांडी ब्राह्मण को यज्ञ संपन्न करने के लिए दशपुर नगर अर्थात मंदसौर में आमंत्रित किया था, यज्ञ संपन्न होने के पश्चात भगवान हाटकेश्वर के आदेश से यह ब्राह्मण मंदसौर में ही निवास करने लगे।
भारत वर्ष का इतिहास सदा से ही उत्थान एवं पतन का इतिहास रहा है। समय-समय पर अनेक जातियां एवं धर्म के लोग यहां आये, इससे यहां की जातियों को उनसे अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए निरन्तर संघर्ष एवं युद्ध करने पड़े। जिसके परिणाम स्वरूप कई प्रकार की सभ्यताओं, संस्कृतियों, भाषाओं, रीति-रिवाजों, परंपराओं, धार्मिकता आदि कई क्षेत्रों में इसे उत्थान एवं पतन को देखना पड़ा। आज तो कुछ इनका स्वरूप हम देख रहे है। वह इनका मिला जुला रूप है यही एक समन्वित सभ्यता एवं संस्कृतित हमें विरासत में मिली है। जिससे इसके शुद्धस्वरूप को पहचानना कठिन है फिर भी इसकों प्राप्त करने के प्रयास किये जा रहे है।
इसी तरह *दशोरा जाति का इतिहास भी उत्थान एवं पतन का रहा है* जिससे गुजर कर आज यह जाति अपना अस्तित्व बनाये हुए है। जो हमारे लिये गौरव की बात है।
दिल्ली का शासक अलाउद्दीन खिलजी सन् 1305 ई. के लगभग उसके चितौड़ एवं मालवा पर आक्रमण कर अपने अधिकार में कर, वह मालवा से वापस चितौड़ दिल्ली जाते समय 1305 ई. में उसने मार्ग में मन्दसौर पर आक्रमण किया । जनश्रुति के आधार पर अलाउद्दीन खिलजी घोर साम्प्रादिय एवं क्रूर शासक था। अलाउद्दीन खिलजी ने मंदसौर पर आक्रमण किया तो यह युद्ध तीन दिन चला। यवनों को नगर के ही किसी जयचंद ने खबर दी कि श्रावणी पूर्णिमा पर नागर ब्राह्मणों के हाथों में कोई अस्त्र-शस्त्र नहीं होते। वह शिवना नदी में श्रावणी कर्म करने के लिये पुस्तक व माला हाथ में लेकर आते थे। केवल इस दिन ही इन पर आक्रमण कर इनकों हराया जा सकता है। अन्यथा इन्हें युद्ध में हराना असंभव है। श्रावणी पूर्णिमा (रक्षा बंधन) के दिन अलाउद्दीन खिलजी ने 10,000सैनिकों के साथ, श्रावणी कर्म करने के लिये इकठ्टा हुए निःशस्त्र ब्राह्मणों, प्रजा एवं उपस्थित राजा पर चुपचाप हमला बोल दिया। जिसमें हजारों ब्राह्मणों का कत्ले आम (नरसंहार) हुआ जिससे शिवना नदी का पानी लाल रक्तमय हो गया।
दसपुर के दुर्ग (किले) के अंदर दशोरा बाह्मण बालिकाओं एवं महिलाओं ने आक्रमण के कारण जल जोहर किया, किले के अंदर एक बावडी हे जिसे आज भी “कुंवारी कोट” के नाम से जाना जाता हे , सामूहिक जल जोहर की यह एक मात्र घटना है, ऐसा इतिहासकार बताते हैं ।
यवनों के आक्रमण के पूर्व ही ब्राह्मणों ने हाटकेश्वर भगवान के मंदिर से अष्टमुखी मूर्ति को शिवना नदी में प्रवाहित कर दिया था। ताकि यवन मूर्ति को क्षति ना पहुंचा सके। कालांतर में नदी में बाढ़ आने पर मूर्ति रेत में दब गई होगी। ब्राह्मणों का कत्ले आम करने के बाद अलाउद्दीन सेना सहित नगर में जाकर उसने कुमारियों-बच्चों का कत्ले आम किया व मनमानी की। संपत्ति लूटते हुए अपनी इच्छाओं की पूर्ति करता हुआ आगे बढा। कत्लेआम में उसने केवल ब्राह्मणों को ही मारा एवं अन्य जातियों को जिसने अपने को महाजन,पांची, मोची, तेली, कुम्हार आदि बताया उनकों छोड़ दिया। जो लोग इस नरसंहार से बच गये थे। उन्होंने इन शवों का दाह संस्कार किया तथा मंदिरों में बची हुई मूर्तियों को भी जल में प्रवाहित कर दिया। शवों के दाह संस्कार के समय जो स्त्रियां सती हुई थी, उन्होंने श्राप दिया कि कोई दशोरा (नागर ब्राह्मण) इस दुर्ग में वास नही करेंगा तथा शिवना नदी का जल भी नही पियेगा। आज भी सतियों का ओटला मन्दसौर में विद्यमान है। कहते है कि इस नरसंहार में इतने ब्राह्मणों का मारा गया था कि 74 ½मन उनकी जनेऊ का भार था। आज भी दशोरा 74 ½ मन की आन मानते है।
इस नरसंहार के बाद बचे हुए परिवार स्त्रियों एवं बच्चों को लेकर तथा आवश्यक वस्तुओं को बैलगाडियों में रखकर अपने पूर्वजों की भूमि को अंतिम प्रणाम करके अनजानी मंजिल की ओर चल पड़े। जाते समय इस नगर की मिट्टी को अपने मष्तक पर लगाकर प्रतिज्ञा की, “ इस धरती के पुनः दर्शन नही करेंगे और शिवना नदी का जल नही पियेंगे, हमें 74 ½ की आन है। ” बचे हुए नागर ब्राह्मण के परिवार के लोग जिसमें 350 बैलगाडी उत्तर प्रदेश की ओर, 350 बैलगाड़ी मालवा निमाड़ की ओर तथा 350 बैलगाड़ी गुजरात की ओर चल पड़ी। जो दशपुर से आने के कारण अपने आपको दशोरा कहने लगे। विभिन्न दिशाओं में जाने वाले व्यक्ति आज भी दशपुर में की गई अपनी प्रतिज्ञा का पालन कर रहे है। दशपुर मे बचे हुए नागर जो बुजुर्ग, महिलाऐं एवं बालक थे उन्होंने अपनी जनेऊ उतारकर अपने आप को ब्राह्मण नहीं कहते हुए अलाउद्दीन खिलजी के कत्लेआम से बच गये तथा अपने परिवार सहित बैलगाड़ियों में बैठ कर मन्दसौर से रवाना हो गये। किवदन्ती है कि 1400 बैलगाड़ियाँ मन्दसौर से चारों दिशाओं में रवाना
हुई ।
इनमें से जो 350 बैलगाड़ी निमाड़-मालवा (दक्षिण) की ओर गया था वे नर्मदा पार जाकर बस गये। जो व्यापार का कार्य करते थे जिससे ये अपने को महाजन कहने लगे थे। तथा इसी कारण से इन्हें कत्लेआम में छोड़ दिया गया था। ये लोग आज भी काफी संख्या में मालवा व निमाड़ में विद्यमान है। ये अब तक अपने आपकों दशोरा ब्राह्मणों से भिन्न मानते रहे। जबकि दशोरा महाजन एवं दशोरा ब्राह्मण एक ही जाति व वंश के है। दोनों के कुल, गौत्र, अवंटक, प्रवर आदि में पूर्ण समानता है। जो समुदाय मेवाड़ में महाराणा हमीरसिंह की शरण में आये थे वे वहीं बस गये। लम्बे समय तक प्रथक रहने के कारण तथा स्थान भेद के कारण दशोरा ब्राह्मणों एवं दशोरा महाजनों में भोज एवं कन्या लेन-देन का संबंध टूट गय, जिससे दोनों दो भिन्न जातियाँ बन गई। प्रश्नोरा नागर एवं दशोरा – मूल रूप से यह दशोरा जाति ’ नागर एवं प्रश्नोरा नागर ’ ही दशपुर में रहने तक इसे ’ दशपुरीय प्रश्नोरा नागर ’कहा जाता था किन्तु वहां से विस्थापित होने के बाद इनकी पहचान दशपुर जाति से होने लगी तथा इन अन्य प्रश्नोरा नागरों से इनका भोजन व कन्या लेन-देन का व्यवहार टूट जाने से यह जाति एक भिन्न जाति बन गई। इस प्रकार सभी प्रश्नोरा नागर, ’ दशोरा ’ नही है। बल्कि इनका वर्ग जो दशपुर में रहा तथा वहां से विस्थापित हुआ वहीं अपने को दशोरा कहने लगे। अन्य प्रश्नोरा नागर अभी भी अपने को प्रश्नोरा नागर ही कहते है। इसी प्रकार सभी ’ दशोरा ’ प्रश्नोरा नागर नहीं है। जैसा पहले स्पष्ट किया गया है कि तेली, तम्बोली आदि प्रश्नोरा नागर नही है। ये पूर्व में भी भिन्न जातियाँ थी। केवल दशोरा महाजन ही प्रश्नोरा नागर थे। जो कन्या लेन-देन बंद हो जाने से भिन्न जाति मानी जाने लगी। ये दशोरा ब्राह्मण वर्तमान में मेवाड़, कोटा, भीलावाड़ा, मालवा-निमाड़,मध्यप्रदेश में बसे हुए है।
दशपुर नगर में वापसी की घटना
आपातकाल के दौरान सहकारिता विभाग में निमाड़ क्षेत्र के श्रीकृष्ण दासजी दशोरे मंदसौर स्थानांतरित होकर आए थे इनके साथ श्री ब्रजमोहन जी सुगंधी भी थे। यहाँ उनकी भेंट राम स्नेही संप्रदाय के संत श्री राम किशोर जी महाराज से हुई, मुलाकात का माध्यम बनें श्री रामकुमार मारोठिया,तथा दशोरा समाज के इतिहास को खोजने में सहयोग मिला प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ रघुवीर सिंह जी का। ऐतिहासिक दस्तावेजों के आधार पर जब इस बात का पता चलाnकी दशहरा समाज मंदसौर का समाज है तो मंदसौर में एक सम्मेलन का आयोजन करने का निर्णय लिया ताकि यह शपथ समाप्त हो सके।
उस समय के कांग्रेस के वरिष्ठ नेता श्री भंवरलाल जी ने नाहटा के नेतृत्व में अभियान चलाया गया, जिसमें श्री कृष्णदास जी दशोरे, बड़वाह के किशनलाल जी दशोरा श्री ब्रजमोहन जी सुगंधी और निमाड़ मालवा गुजरात राजस्थान क्षेत्र के अनेक दशोरा समाज के प्रमुखों से संपर्क करने के पश्चात यहां 6 दिसंबर 1976 को एक विशाल सम्मेलन प्रथम बार आयोजित किया गया। जिसकी शोभायात्रा में विभिन्न क्षेत्रों से आए हुए दशोंरा समाज के करीब 5000 लोग सम्मिलित हुए और उनकी एक शोभायात्रा* *स्थानीय बस स्टैंड से लेकर पशुपतिनाथ मंदिर तक ले जाई गई जहां पर सामूहिक विवाह के अंतर्गत तीन जोड़ों का विवाह संपन्न हुआ, जिसमें बड़वाह के किशन लाल जी दशोरा के दो पुत्र श्री चंद्रकांत गुप्ता (पूर्व विधायक बडवाहा विधानसभा) एवं उनके भाई सुरेश गुप्ता तथा धार के एक सुगंधी परिवार का लड़का था।
इस प्रकार 700 साल पूर्व ली गई शपथ को तोड़कर शिवना नदी का जल पिया।
तब ही से दशोरा समाज को एक सूत्र में बांधने के प्रयास शुरू किए गए, उसके लिए मंदसौर में बहती हुई शिवना नदी की बड़ी पुल और छोटी पुल के बीच एक स्थान पर उनकी कुलदेवी स्थापित है, प्रतिवर्ष अपनी कुलदेवी का पूजन करने के लिए संपूर्ण भारत से दशोरा समाज के लोग उपस्थित हो रहे हैं।
अब कल दिनांक 2 जून 2025 को ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष सप्तमी को अपनी कुलदेवी का पूजन करने के लिए मंदसौर नगर में उपस्थित हो रहे हैं। आप सभी का हम मंदसौर नगर में स्वागत करते हैं।
संकलन- *रमेशचन्द्र चन्द्रे*
*नोट* – उक्त जानकारी विभिन्न सूत्रों से प्राप्त की गई है कोई आपत्तिजनक तथ्य हो तो कृपया अवगत कराएं🙏🙏