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    नक्सल क्षेत्र विकास में लघु वनोपज संघ और उत्तर वन मंडल ने अपनाया सामुदायिक विकास का मॉडल

    आनंद ताम्रकार
    बालाघाट २  जून ;अभी तक – बालाघाट अपनी वन संपदा और जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध जिलों में गिना जाता है। यहां 53.44 प्रतिशत क्षेत्र में सुरम्य और रोमांचित कर देने वाला जंगल प्राकृतिक रूप से आच्छादित है। अब यहां उत्तर वन मंडल और लघु वनोपज मिलकर जनजातीय क्षेत्रों के सामुदायिक विकास में वन औषधियों के साथ ही सागौन, साल, बीजा, बांस और तिनसा के अलावा ऐसी वनोपज भी है जो जनजातीय नागरिकों के लिए आर्थिक आधार बन रही है। यहां की वनोपज के क्रय विक्रय में लघु वनोपज संघ द्वारा जनजातीय क्षेत्र और यहां निवास कर रहे नागरिको के आर्थिक विकास में बड़ी भूमिका अदा कर रहा है। उत्तर वनमंडल बालाघाट और लघु वनोपज संघ मिलकर सामुदायिक विकास (कलेक्टिव डेवलपमेंट) का मॉडल अपनाकर नक्सल क्षेत्रों में सड़क बिजली और पानी की नई आधारभूत संरचानाये बनाकर सामुदायिक विकास की ओर अग्रसर है। वनोपज संग्रहण से नागरिको को बहुतायत में रोजगार भी उपलब्ध हुआ है, जिसमें 51 हजार से अधिक संग्राहक परिवारों को क्षेत्र में पलायन रोकने में कारगर साबित हो रही है। साथ ही वनोपज के लाभांश से जनजातीय क्षेत्र में अधोसंरचना के 30 करोड़ रुपये की राशि के कार्य हुए है।
    झिरियों के स्थान पर ट्यूबवेल और हेंडपम्प,पगडंडियों की जगह सीसी रोड़ ने ली
    वनोपज संघ ने 31 प्राथमिक समितियों के माध्यम से तेंदूपत्ता संग्रहण में 75 प्रतिशत अंश का पारिश्रमिक भुगतान और 20 प्रतिशत लाभांश से अधोसंरचनो का विकास किया गया। वर्ष 2021 से 2024 तक 30 करोड़ रुपये की लागत से अधोसंरचना के कार्य हुए है। यहां उत्तर वनमंडल द्वारा पेयजल की व्यवस्था के लिए झिरियों के स्थान पर ट्यूबवेल और हेंडपम्प स्थापित किये। पगडंडियों व कीचड़ और धूलभरी हवाओं की जगह सीसी रोड़ ने ले ली है। पशुओं व खेती के लिए तालाब, स्टॉपडेम, लाइट के लिए सोलर पैनल, स्ट्रीट लाइट, सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए पक्के सामुदायिक भवन और सभामंच बनवाएं गए है। जनजातीय क्षेत्रो में 20 हेंडपम्प, 16 सीसी रोड़, 13 सामुदायिक भवन, ट्यूबवेल, 6 तालाब और स्टॉपडेम, 21 कार्य स्ट्रीट लाइट के और 2 स्थानों पर पुलिया निर्माण भी किया गया।
    ऐसे समय में रोजगार मिला, जब कहीं काम नही होता
    डीएफओ श्रीमती नेहा श्रीवास्तव बताती है कि यह मॉडल वनोपज संग्राहक परिवारों द्वारा कमाई से हुए लाभांश की बोनस राशि पर आधारित है। इसमें संग्राहकों को मजदूरी/बोनस और फिर शेष राशि से सामुदायिक व्यवस्था विकसित करने का मॉडल है। जिसे बालाघाट के उत्तर क्षेत्र के वनीय क्षेत्र में उतारा गया है। यहां 3 वर्षो में करीब 40 करोड़ रुपये के मजदूरी प्रदान की गई। इसके अलावा 30 करोड़ रुपये के कार्य किये गए। सबसे अच्छी बात यह है कि ऐसे समय में जब इनके पास कोई काम नहीं होता है, तब लघु वनोपज से जनजातीय नागरिकों को रोजगार दिया जा रहा है।
    प्राथमिक समितियां तय करती है अधोसंरचनाओं के कार्य
    लघु वनोपज संघ अध्यक्ष श्री मण्डलेकर इस मॉडल पर हुए कार्यो व नागरिकों के रहवासी क्षेत्रो में विकास को लेकर उत्साहित है। उन्होंने कहा कि अब तक जहाँ शासन के विकास कार्य नहीं हुए वहां प्राथमिक समितियां स्वयं के गांव में सड़क, बिजली पानी जैसे कार्य तय करती है। उनकी मांग के अनुसार उत्तर वनमंडल और लघु वनोपज संघ द्वारा कार्य किये गए है। मुंडा, हर्राटोला,केरेझरी, पिटकोना,मालखेड़ी और परसाटोला जैसे अनेक गांव है जो नक्सल प्रभावित भी है। वहां अधोसंरचना पर काम किया गया।

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