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    पंच कल्याणक महोत्सव के अंतिम दिन मोक्ष कल्याणक के अवसर पर दो जैनेश्वरी दीक्षा हुई, महायज्ञ एवं गजरथ के आयोजन हुए

    महावीर अग्रवाल 
    मन्दसौर २० अप्रैल ;अभी तक ;   श्री णमोकार महामंत्र साधना केन्द्र बही पार्श्वनाथ पर चल रहे पंचकल्याणक महोत्सव के अंतिम दिन मोक्ष कल्याणक का आयोजन हुआ।
                                          आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज द्वारा आयोजन के अन्तर्गत दो जैनेश्वरी दीक्षाएं भी प्रदान की गई। इस अवसर पर विशाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए आचार्यश्री ने कहा संसारी प्राणियों ने जिस पर्याय को प्राप्त किया उसे ही सबकुछ समझ लिया, तप धारण करके जो कर्मों की निर्जरा करते हैं वे संयम के बल पर आत्मा को पहचान पाते हैं। शरीर का श्रृंगार सब करते हैं परन्तु आत्मा के श्रृंगार तप और संयम को भूल जाते हैं। आचार्य श्री ने कहा दीक्षा लेना जीवन में आमूल चूल परिवर्तन करना है। दीक्षार्थी शिष्य की गुरू अनेकों बार परीक्षाएं लेता है। मोक्ष कल्याणक के साथ भगवान का शरीर कपूर की भांति उड जाता है केवल नख और केश रह जाते हैं,
                                    जिनका अग्नि कुमार देवों द्वारा अंतिम संस्कार किया जाता है,,,जबकि संसारी प्राणी की आत्मा शरीर से निकल जाती है और मृत शरीर संसार में रह जाता है। व्यक्ति जब घूमते घूमते थक जाता है तो उसे विश्राम करना होता है वैसे ही जो संसार की चौरासी लाख योनियों में भ्रमण करके थक जाते हैं वे संयम पथ पर बढकर सिद्ध अवस्था प्राप्त कर अनंतकाल तक विश्राम करते हैं। आचार्यश्रीने कहा कि अब तक इन्द्रिय सुख के लिए पुरुषार्थ किया अब आत्मिक सुख को प्राप्त करने का  पुरुषार्थ करें।
    महोत्सव की मीडिया प्रभारी डॉ चंदा भरत कोठारी ने बताया आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने दीक्षा संस्कार सम्पन्न करते हुए ब्रह्मचारी राजेश भैया मेडता को दीक्षा उपरान्त मुनिश्री ध्येय सागरजी व ब्रह्मचारी श्री सुरेश शाह जयपुर को मुनिश्री भुवन सागरजी के रूप में नामकरण किया।
    71 वर्षीय राजेश भैया व 75 वर्षीय सुरेश शाह की दीक्षा से पूर्व केशलोच किया गया तब उन वैराग्यमयी पलों में दोनो दीक्षार्थियों के परिजनों के नेत्रों से आंसू छलक रहे थे। जब दोनो दीक्षार्थियों ने अपने वस्त्र उतारकर दिगम्बर मुनिपद धारण किया, तब उनके मस्तक पर आचार्यश्री ने बीज मंत्र आरोहित किए तथा मुनियों के 28 मूलगुणों के पालन का संकल्प दिया।
    दीक्षा के पश्चात महोत्सव में महायज्ञ किया गया। तत्पश्चात विशाल गजरथ निकाला गया जिसमें दो गजराज तीन मंजिला रथ को खींचकर परिसर की फेरी लगा रहे थे। रथ में सबसे ऊपरी तल पर सौधर्म इन्द्र धनपति कुबेर, महायज्ञ नायक भगवान की प्रतिमा के साथ बैठे, नीचे दोनो तल पर लाभार्थी परिवारों के परिजनों ने बैठकर परिक्रमा की। क्षेत्र पर देशभर से आए हजारों श्रद्धालुओं ने गजरथ फेरी में भाग लिया। बैण्ड बाजों के साथ निकली गजरथ फेरी में दो नूतन मुनिराजों सहित आचार्यश्री के संघ की 36 पिच्छी भी साथ चल रही थी। यह दृश्य अत्यंत अद्भुत और अलौकिक था।
    गजरथ फेरी के उपरान्त श्री नंदीश्वर द्वीप जिनालय एवं श्री सम्मेदशिखरजी की रचना पर महोत्सव में प्रतिष्ठित की गई 211 प्रतिमाओं को लाभार्थी परिवारों द्वारा विराजित किया गया। संपूर्ण परिसर में लगातार जयकारे गूंजते रहे।
    आयोजन में उपमुख्यमंत्री श्री जगदीश देवड़ा, विधायक विपिन जैन भी सम्मिलित हुए । महोत्सव समिति अध्यक्ष श्री शांतिलाल बड़जात्या, महामंत्री अशोक पाटनी ने आयोजन की सफलता के लिए सभी का आभार व्यक्त किया।

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