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    पुर्जे डालते ही पुराना वाहन हो जाता है नया,प्रदूषण हो जाता है गायब, केंद्र सरकार अपने निर्णय पर करे पुनर्विचार और परिवहन विभाग में लाए कसावट

    महावीर अग्रवाल
    मंदसौर ३ जुलाई ;अभी तक ;   10-15 वर्ष पुराने वहनों को लेकर केंद्र सरकर आखिर वाहन मालिकों के क्यों पीछे पड़ी है। वाहनों के पुर्जे बनाने के बड़े-बड़े उद्योग देश में चल रहे हैं। शोरूम से लेकर छोटे-छोटे मैकेनिक को रोजगार मिला हुआ है ।किसी भी वाहन में कोई भी पुर्जा खराब हुआ तो वाहन मालिक उस बदलवा देते हैं। पुर्जा नया लगते ही वाहन फिर से नए वाहन जैसी सर्विस देने लगता है। सरकार बताए कि वाहन में नया पुर्जा लगते ही क्या वाहन नए  वाहन के समान सर्विस नहीं देने लगता हे यदि ऐसा नहीं हे तो वाहनों के पुर्जे बनाने वाले उद्योग बेकार हे। सवाल प्रदूषण का तो यह काम सरकर के परिवहन विभाग का है की वह बिना लापरवाही और साठगांठ के वाहन की जांच कर अवशयक कदम उठाए।परंतु सरकर अपनी कमजोरी वाहन मालिकों पर क्यों थोप रही है।
                                        जब से सरकर ने 10 और 15 वर्ष पुराने वहनों को सड़कों पर चलाने को लेकर जो कदम उठाए हैं वे बिलकुल अव्यवहारिक और लोगों पर भारी भरकम भार थोपाने से कम नहीं है ।सरकर ने यह कदम उद्योगों में बनने वाले वहनों की अच्छी खासी बिक्री बढ़ाने को लेकर निर्णय लिया है या उसका और कोई उद्देश्य है। जहां तक पुराने वाहनों के द्वारा प्रदूषण फैलाने का सवाल है वह सरकर के परिवहन विभाग को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए जांच में कोई कोताही या लापरवाही हो तो अव्यवस्था को जन्म देती है ।यह बिलकुल भी व्यवहारिक व जनता के हित में नहीं है। हर 10- 15 वर्ष में वे पुराने वाहन को  कौड़ियों के भाव बेचे और खरीदे नए वाहन। सरकार आखिर देश में मध्यम वर्गीय परिवारों पर अपना यह आर्थिक बोझ क्यों थोपाना चहती है।
                                              देश में भाई बड़े-बड़े उद्योग पुर्जे बना रहे हैं।देश भर में कई शोरूम से लेकर छोटे-छोटे मैकेनिक वाहन दुरुस्ती के कम में लगे हैं। क्या सरकर चहती है की केवल नए वाहन के उद्योग ही फले फुले और बाकी का धीरे-धीरे भट्टा  बैठ जाए। कोई भी वाहन 10 – 15 वर्ष में पुराने नहीं होते बल्कि नए वाहन भी कुछ दिन चलने के बाद ही कुछ अच्छा एवरेज देना व स्मूथ चलना प्रारंभ करते हैं। ऐसा शोरूम पर बताया जता है। सबसे बड़ी प्रामानिक कि बात तो यह है की किसी भी वाहन में कोई भी पुर्जा खराब होता है तो वाहन का मालिक नया पुर्जा डलवा देता है और गाड़ी फिर नई हो जाति है तो क्या पुर्जे बदलने की प्रक्रिया गलत है ।सरकर क्या धीरे-धीरे नए पुर्जे बनाने वाले उद्योगों का भट्टा बिठाना चहती है। क्या छोटे-छोटे सैकड़ों की संख्या में मैकेनिक जो इस देश में काम के लिए रोजी रोटी में लगे हैं क्या यह गलत है।
                                           वाहन नया हो या10- 15 वर्ष पुराना, उसमें अवशयकता होने पर नया पुर्जा डलवाते ही उसमें रौनाक आ जाति है और वह उसी प्रकार सड़कों पर दौड़ता है ।वाहन मालिक को उसके प्रदूषण का भी ख्याल रहता है। ऐसा होने पर वाहन का एवरेज और धुएं के रंग से पता चल जता है। ऐसे में जो पुर्जे आवश्यक हो बदलवा दिया जाता है ।इसके बाद वाहन की आवाज से ही स्पष्ट हो जाता है की वाहन नया हो गया है फिर केंद्र सरकर क्यों चिंतित।चिंता तो उसके परिवहन विभाग को होना चाहिए।लापरवाही और साठगांठ से जिनके मार्गदर्शन में ही प्रदूषण फैलाने वाले वाहन चलते हैं और चल रहे हैं ।सरकर कदम उठाए तो ऐसे कदम उठाए की उसका परिवहन विभाग सुधरे।
    पुराने वहनों को हटाने और नए वहनों को चलाने को लेकर क्या सरकर ने ऑटोमोबाइल सेक्टर के बड़े उद्योगों से कोई चर्चा की है ।क्या नए वहनों का उठाव ज्यादा होना चाहिए ।मैं उनको यहां यह बता देना चाहता हू कि  वैसे भी नए वाहनों की भरमार सड़कों पर शुरू हो चुकी है। बस सरकर को कदम उठना है तो परिवहन विभाग को मजबूत करने का है ।सरकर अपने 10- 15 वर्ष पुराने वहनों के चलने को लेकर जो निर्णय लिया है उस पर तुरंत वापस ले क्योंकी अवशयकता पड़ने पर पुर्जे बदलते ही वाहन नया हो जाता है। भले ही कोई छोटे बड़े उद्योग हो या अन्य कोई सभी में पुर्जे बदलते ही उद्योग नया हो जाता है ना की उस उद्योग की मशीनन बदलने से।
     मंदसौर में पुराने वाहनों की बात करें तो कई यात्री बसे खटारा हालात की दौड़ रही है ।जरा केंद्र या राज्य सरकर अपने महकमे की हालात को देखें।अब क्या महकमे का भी हर समय नवीकरण किया जाएगा ।बल्कि काम  में कसावट ही सबसे बढ़िया कदम है। बताते हैं की केंद्र सरकर के 10 – 15 वर्ष पुराने वहनों को लेकर निर्णय से दिल्ली में उसके आसपास के राज्यों के वाहन चालक बहुत परेशान है । वहां स्क्रैपर का धंधा चल ही नहीं दौड़ रहा है। कहीं कोई सुनवाई नहीं है।एक अखबार में छपी रिपोर्ट से पता चलता है की ऐसे पुराने वाहनो पर दलाल भी सक्रिय हैं जो 10- 15 वर्ष पुराने वाहन नंबर प्लेट से पहचान कर उठा ले जाते हैं और फिर शुरू हो ती है सौदेबाजी। तो कुछ ऐसे भी उदाहरण बताये जा रहे हैं की कुछ तो पलट कर देखते ही नहीं है । ऐसे व्यक्ति सरकर के प्रति अपने मैं में क्या धारणा लेकर जाते होंगे। सरकर अपने निर्णय पर पुनरविचार करें और अपने परिवहन विभाग को सुधारे ।

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