प्रस्तुति-रमेशचन्द्र चन्द्रे
मंदसौर १२ फरवरी ;अभी तक ; एक दिन संत रविदास अपनी झोपड़ी में बैठे प्रभु का स्मरण कर रहे थे। तभी एक राहगीर व्यक्ति उनके पास अपना जूता ठीक कराने आया! रैदास ने पूछा कहां जा रहे हैं, वह व्यक्ति बोला गंगा स्नान करने जा रहा हूं। जूता ठीक करने के बाद व्यक्ति ने कहा कि तुम भी गंगा स्नान करके आओ किंतु रविदास ने यह कहा कि मेरी गंगा, मेरा यह व्यवसाय है, मैं इसे ईमानदारी से करता हूं तो मैं गंगा नहाया बराबर ही हूं। जूता सुधारने बाद उस व्यक्ति द्वारा रविदास को उसकी मजदूरी के रूप में एक मुद्रा दी गई,किंतु रविदास ने व्यक्ति से प्रार्थना की कि इस मुद्रा को आप मेरी तरफ से मां गंगा को चढ़ा देना। वह व्यक्ति जब गंगा पहुंचा और गंगा स्नान के बाद जैसे ही उस व्यक्ति ने कहा- हे गंगे रैदास की मुद्रा स्वीकार करो, तभी गंगा से एक हाथ आया और उस मुद्रा को लेकर बदले में उसे व्यक्ति को एक सोने का कंगन दे दिया।
व्यक्ति जब गंगा का दिया हुआ कंगन लेकर वापस लौट रहा था, तब उसके मन में विचार आया कि, रविदास को कैसे पता चलेगा कि गंगा ने बदले में कंगन दिया है, मैं इस कंगन को राजा को दे देता हूं, जिसके बदले मुझे उपहार मिलेंगे। उसने राजा को कंगन दिया, बदले में उपहार लेकर घर चला गया। जब राजा ने वो कंगन रानी को दिया तो रानी खुश हो गई और बोली मुझे ऐसा ही एक और कंगन दूसरे हाथ के लिए भी चाहिए। राजा ने राज्य के बड़े सुनार को बुलाया और कहा कि ऐसा कंगन बनाओ किंतु सुनार ने देख कर कहा- जी महाराज यह कंगन अलौकिक है। ऐसी एक भी धातु अथवा मोती हमारे यहां नहीं है कि ऐसा कंगन बनाया जा सके यह सुनकर
राजा ने उस व्यक्ति को बुलाकर कहा- वैसा ही कंगन एक और चाहिए, यदि तुम दूसरा कंगन नहीं ला सके तो तुम्हें मृत्यु दंड का पात्र बनना पड़ेगा। व्यक्ति परेशान हो गया कि दूसरा कंगन कहां से लाऊं? डरा हुआ वह संत रविदास के पास पहुंचा और सारी बात बताई। रविदास बोले कि तुमने मुझे बिना बताए राजा को कंगन भेंट कर दिया, इससे परेशान न हो। तुम्हारे प्राण बचाने के लिए मैं गंगा से दूसरे कंगन के लिए प्रार्थना करता हूं।
ऐसा कहते ही रविदास ने अपनी वह कठौती उठाई, जिसमें वो चमड़ा गलाते थे, उसमें पानी भरा था। रविदास जी ने मां गंगा का आह्वान कर अपनी कठौती से जल छिड़का, जल छिड़कते ही कठौती में एक वैसा ही कंगन प्रकट हो गया। रैदासजी ने वो कंगन व्यक्ति को दे दिया। वह खुश होकर राजा को वह कंगन भेंट करने चला गया। तभी से यह कहावत प्रचलित हुई कि ‘मन चंगा, तो कठौती में गंगा’। रविदास के निर्मल मन और अपने धर्म की आस्था को उनका अपना समाज भी स्वीकार कर ले तो धन्य हो जाए।