*रमेशचन्द्र चन्द्रे*
मंदसौर १२ मई ;अभी तक ; जिस परिवार में जहां मुखिया के प्रति विश्वास, सम्मान तथा श्रद्धा रहती है, वही परिवार बहुत बड़ी संख्या होने के बाद भी कभी टूटता या बिखरता नहीं है।
किंतु परिवार के मुखिया पर यदि पक्षपात अथवा प्रेम की असमानता या निर्णय की अक्षमता का आरोप लगाया जाता है तो मुखिया का मनोबल भी कमजोर होता है और ऐसा परिवार शीघ्र ही बिखर जाता है।
उक्त स्थिति एक राष्ट्र पर भी लागू होती है क्योंकि जनता की इच्छा और राष्ट्र की सुरक्षा दोनों भिन्न-भिन्न फैक्टर हैं। किसी भी राष्ट्र की जनता को अंतरराष्ट्रीय कूटनीति अथवा वास्तविक परिस्थितियों का ज्ञान नहीं होता है और ना ही कुछ मामलों में उसे बताया ही जाता है। इसलिए अपने मुखिया पर विश्वास बनाए रखना ही जनता का नैतिक दायित्व है। अन्यथा देश की एकता प्रभावित हो सकती है।
कतिपय विपक्षियों और सोशल मीडिया के द्वारा किए जा रहे हैं “सरकार विरोधी” मैसेजो या वीडियो से भारत सरकार प्रभावित होकर यदि भारत पाकिस्तान पर आक्रमण कर दे तो यह देश के संचालन की कोई उपयुक्त राजनीतिक शैली नहीं हो सकती है ।
“युद्ध विराम” की स्थिति क्यों स्वीकार करनी पड़ी? किस-किस देश के दबाव के कारण दोनों देशों को यह निर्णय लेना पड़ा? यह वहां के मुखिया ही जानते हैं।
भारत में रहने वाले कुछ विपक्षी दलों के लोग तथा मुस्लिम समाज के कुछ नेता पाकिस्तान पर आक्रमण करने के लिए सोशल मीडिया के माध्यम से सरकार को उकसाने का प्रयास कर रहे हैं, ऐसा प्रतीत होता है कि वह पाकिस्तान को निपटाने के बजाय उनके मन में कहीं न कहीं भारत की राजनीतिक सत्ता को कमजोर करने का विचार चल रहा है।
यहां यह भी याद रखना चाहिए कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार में बैठे लोग, कोई ना- समझ या कमजोर दिमाग के नहीं है, वह भी विगत 100 वर्षों से देश भक्ति का पाठ पढ़ रहे हैं तथा विगत 75 वर्षों से पाकिस्तान की गतिविधियों से वाकिफ है।
1971 की परिस्थितियों अलग थी उस समय “इलेक्ट्रॉनिक वार” बहुत कम होते थे। केवल बंदूकों के सहारे ही लड़ाई परवानन चढती थी, दूरसंचार के साधन कम थे। इस कारण उस समय का दौर अलग था। अब दूर संचार के साधन इतने अधिक सक्रिय हैं कि संपूर्ण विश्व में एक-एक घटना की जानकारी प्रत्येक राष्ट्र को हो जाती है तथा प्रत्येक राष्ट्र के अपने व्यावसायिक स्वार्थ भारत- पाकिस्तान से जुड़े हुए हैं। इस कारण से वे सीज़ फायर की बात करते हैं तथा कुछ भारत की प्रगति को हजम नहीं कर पा रहे हैं, इसके कारण वह इसके पक्ष में प्रत्यक्ष खड़े होने की बात ना करके भारत को संकट में डालने का प्रयास कर रहे हैं और उसमें हमारे भारत के कुछ ना समझ लोग भी सहमत दिखाई देते हैं। किंतु युद्ध जज्बातों से नहीं लड़ा जाता।
हमारे मोहल्ले में घर के पड़ोस में रहने वाला पड़ोसी जब हमारी शांति भंग करता है तो उसको निपटाने में भी हमको अपनी संपूर्ण शक्ति लगानी पड़ती है तो यह तो राष्ट्रों का मामला है, इसलिए इस विषय में धैर्य रखिए।
इस देश के नागरिकों की सुरक्षा और देश का सम्मान हमारी चुनी हुई सरकार के लिए सबसे सर्वोपरि है और इसे कायम रखने के लिए ही भारत के मुखिया ने सीज़ फायर के निर्णय को स्वीकार किया होगा। भरोसा रखिए और प्रतीक्षा कीजिए और देश के मुखिया का मनोबल बढ़ाते रहिए।