महावीर अग्रवाल
मंदसौर १३ अप्रैल ;अभी तक ; मौजूदा समय में हम देख रहे हैं कि संसदीय लोकतंत्र के सामने कई खतरे मुँह बाएं खड़े है उन्हें डॉ. आम्बेडकर ने साढ़े छः दशक पूर्व ही देख लिया था। आम्बेडकर की इस दूरदृष्टि में प्रखर राष्ट्रवाद तो दिखाई देता ही है बल्कि संसद की पवित्रता कायम रखने की चिंता और उसके लिये उपाय सुझाने की तत्परता भी नज़र आती है। उनकी यह दृढ़ मान्यता थी की राज करने वालों को प्रशिक्षण देना जरूरी है। इसके लिये उन्होंने मुम्बई के सिद्धार्थ महाविद्यालय में प्रशिक्षण केन्द्र भी स्थापित किया था।
राष्ट्रवाद की आम्बेडकर की अवधारणा के मुताबिक यह एकता की भावना है। इसलिये हम सब एक दूसरे के भाई और रिश्तेदार हैं। इसमें लोगों के बीच का संवाद, समान भागीदारी और जीवन के विभिन्न पहलुओं में योगदान शामिल है। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की वकालात करते हुए आप कहते है कि ‘राष्ट्र यानी लोगों को बन्धुता में बांधने वाला आध्यात्मिक अस्तित्व।’
हम सबको यह बात याद रखना चाहिए कि यदि नाराजगी संवैधानिक दायरे से बाहर निकलकर अराजकता के व्याकरण को बढ़ावा देने लगे, तो उससे अन्ततः उसी संविधान की व्यवस्था को नुकसान होगा जिसे निर्मित करने में डॉ. आम्बेडकर ने अद्वितीय और अप्रतिम योगदान दिया है। प्रखर राष्ट्रवादी महानायक डॉ. आम्बेडकर को उनकी 134वीं जन्म जयंती के अवसर पर भावपूर्ण आदरांजली के साथ नमन्।