*रमेशचन्द्र चन्द्रे*
मंदसौर १८ अप्रैल ;अभी तक ; तुलसीदास जी ने लिखा है *”प्रभुता पाई जाई मद नाहिं”* और किसी कवित्री ने कहा है कि- ज़रा- सा कुदरत ने क्या नवाज़ा कि आके बैठे हो पहली सफ़ पर अभी से उड़ने लगे हवा में अभी तो शोहरत नई-नई है।जिन पार्टियों की सत्ता होती है उनकी नीवं में हजारों कार्यकर्ताओं के त्याग एवं तपस्या की कहानियाँ दफन रहती है, और ऐसे ही कुछ कार्यकर्ताओं के बल पर मंत्री और मुख्यमंत्री बनते हैं। किंतु अवसरवादी, चमचे, पुलिस के दलाल, प्रशासन के माध्यम से लाभ प्राप्त करने वाले, गलत धन्धों में लिप्त व्यक्ति एवं चाटुकार तथा ऐसे कुछ मूर्ख लोग जो व्यर्थ में ही मंत्रियों के साथ फोटो खीचवाने के चक्कर में भीड बढ़ाकर उनका महत्व बढ़ाते हैं, जिसके कारण मंत्रियों को लोकप्रिय होने का मति- भ्रम हो जाता है और वह असली और प्रामाणिक कार्यकर्ताओं को भूल जाते हैं।
जबकि कोई भी प्रामाणिक और असल कार्यकर्ता, स्वाभिमान शून्य होकर मंत्री के दरवाजे पर कभी नहीं जाते हैं। किंतु उन्हें कभी-कभी इतनी खुशी होती है कि हमारे द्वारा लगाया गया पौधा हमारे द्वार पर ही यश प्राप्त कर रहा है तो क्यों ना हम भी उसे देखें और उसका स्वागत करें। इसी भावना से बंधे हुए वे बिन बुलाए ही अपने मंत्री, मुख्यमंत्री के पास जाते हैं किंतु प्रशासन में कुछ मुर्ख अधिकारी और उनके आसपास ऐसे जिम्मेदार पार्टी के लोग जो केवल कुछ लोगों की कृपा से पद पर बनते हैं जबकि उनकी योग्यता शून्य होती है, वह भी हवा में उड़ने लगते हैं एवं असली कार्यकर्ताओं को इज्जत प्रदान नहीं करते हैं, *उन्हें यह समझ लेना चाहिए कि सत्ता कभी स्थिर नहीं रहती यह आनी- जानी छाया है। जिस दिन तुम सड़क पर आ जाओगे उस दिन इन्हीं प्रमाणिक कार्यकर्ताओं से तुम्हारा पाल पड़ेगा* तथा जिन लोगों से तुम घिरे हुए हो, जो अवसरवादी है, वह सत्ता के जाते ही गायब हो जाएंगे और तुम उन्हें ढूंढते रह जाओगे।
इसलिए सत्ता के मदान्ध मंत्रियों को ज्यादा महत्व देने की आवश्यकता नहीं है। “आना हो तो आओ जाना हो तो जाओ” यदि यह व्यवहार उनके साथ किया गया तो तो 2 दिन में इनकी अकल ठिकाने आ जाएगी। इसलिए उनके प्रति कठोरता बरतनी चाहिए।