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    सागरमाथा का शिखर चूमने के लिए श्रेष्ठतम शारीरिक और मानसिक ताकत के साथ ही शारीरिक समर्पण और मानसिक दृढ़ता की ज़रूरत

    स्वाभिमान शुक्ल की कलम से
                           2011 में जब पहली बार सार पास गया था तो पहले दिन की चढ़ाई बड़ी लंबी थी,हम चढ़ रहे थे और दो जवान उतर रहे थे जो आपस में जीजा साले थे । पूछने पर साले ने बताया तीसरे कैंप से वापिस आ रहे हैं जीजा का पेट खराब हो गया । लौटने वाले गाइड ने शार्ट कट से उतारने के पैसे मांगे थे और पैसे नहीं दिए तो जिस रास्ते से गए थे उसी से उतर रहे थे । साले से मैने कहा तुम summit कर लेते जिसकी तबियत खराब है वो वापिस आ जाता पर रिश्ते की मजबूरियां उसके व्यवहार से दिख रहीं थीं । मिशन अबार्ट करना  किसी भी स्टेज पर टीस देता है दुखी करता है ।असल में जब आप किसी अभियान का संकल्प लेते हो तो उसके पीछे सिर्फ पैसा और समय ही निवेश नहीं होता बल्कि उससे जुड़ती हैं भावनाएं और शारीरिक श्रम । छोटे से हिमालयन ट्रेक के लिए भी ऑफिस शहर की आलसी दिनचर्या वाले हम लोग महीनों पहले से शारीरिक श्रम की मात्रा बढ़ा देते हैं ।
                              आप कल्पना करिए 8100 मीटर से कुछ ज्यादा पर आप हैं और सागरमाथा का शिखर चूमने (everest summit) किसी भी समय निकल सकते हैं जो मात्र 30 घंटे की दूरी पर है( पहाड़ में दूरियां समय से मापी जाती हैं,आप पूछेंगे कितनी दूर जाना है गाइड बोलेगा आधा घंटे दूर है) या  यूं कहे 700 मीटर से भी कम दूरी पर स्थित है और अचानक ही किसी पर्वतारोही की जान पर बन आती है । आपका शेरपा उसे बचा सकता है पर आपको ये मिशन आपका ख्वाब आपकी मेहनत समर्पण प्यार और  निवेशित लगभग 45 लाख रुपए छोड़ने होंगे, क्या करेंगे आप । जान बचाएंगे या अपना ख्वाब । घनघोर स्वार्थी दुनिया जो अपने हित के लिए बाप को बाप नहीं मान रही, एक 50 साल से ऊपर की महिला ने अपने ख्वाब अपनी मेहनत को छोड़कर जान बचाना चुना और मिशन अबॉर्ट कर दिया । महिला जगत जननी है तीव्र प्रसव पीड़ा सह कर सृष्ट्री की रचना करती है ।
                                     The great ज्योति रात्रे हमारे अपने भोपाल की 53 वर्षीय महिला पर्वतारोही, जिनने वर्ष 2024 में 19 मई को एवरेस्ट फतह किया है, हम उन्हें सैल्यूट करते हैं और इस बात को प्रतिपादित करते हैं कि किया गया सत कार्य कभी व्यर्थ नहीं जाता और घोर स्वार्थ की दुनिया ,धरती इन्हीं जैसों के दम पर टिकी है । 2023 का सीजन एवरेस्ट का सबसे खराब सीजन माना जाता है । उस साल 18 कैजुएल्टी और 5 मिसिंग हुए थे । ज्योति जी बताती हैं 8100 मीटर पर भयंकर तूफान आ गया था । साथ का एक बंदा मिसिंग  हो गया था । एवरेस्ट अभियान के लिए सबसे पहले शिक्षा दी जाती है mind your own business,अपना शेरपा और अपना ऑक्सीजन सिलेंडर अपने से दूर नहीं करना है ।यही आपके मिशन की और आपके जीवन की गारंटी है ।
                                        यही मई का समय था 2023 में जब  ज्योति रात्रे ने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी  से भी ऊंची ऊंचाई को प्राप्त किया था, किंतु एवरेस्ट रह गया था। तूफान में गायब हुए साथी को ढूंढने के लिए ज्योति जी ने अपने शेरपा को भेज दिया था । नियम या कांट्रेक्ट यह रहता है आपका शेरपा आपका सिलेंडर आपके साथ रहेगा । और इस अनुबंध से आपको बाहर नहीं जाना है । आप अनुबंध से हटे तो मिशन खत्म । ज्योति जी का शेरपा जब उसे सर्च करके लाया तो उस पर्वतारोही की हालत बहुत खराब थी और उसे नीचे पीठ पर लादकर पहुंचाना था । पहाड़ का नियम है हॉल एल्टीट्यूड पर हुई अधिकतर परेशानी कम एल्टीट्यूड पर लाने से ठीक हो जाती हैं। । ज्योति जी का शेरपा ले जाने के लिए तैयार था किंतु 8100 मीटर पर मिशन अबॉर्ट करने का निर्णय वोकी टोकी पर लेना था और जब तक वो उसे नीचे के कैंप में पहुंचाता  तब तक उस ऊंचाई पर घनघोर तूफान में अकेले रहना था ।मतलब दो  संकट थे,मिशन भी समाप्त और जान भी खतरे में । अपनी जान और 45 लाख दांव पर लगाए गए और वो जान बचाई गई  फिर 48 घंटे बाद आकर शेरपा ज्योति जी को भी नीचे ले आया ।
                                             क्या होता है एवरेस्ट summit , एक ख्वाब होता है पर्वतारोही का जो वो सोते जागते देखता है कि दुनिया की सबसे ऊंची जगह, सबसे ऊंचे शिखर   8849 मीटर पर उसे 2 मिनिट के लिए पहुंचना है, आपके शेरपा ने एक स्माइली वाली फोटो आपके देश के झंडे के साथ ली और एक आपने सेल्फी ली और वापिस । सच होने से पहले यही ख्वाब के साथ वो सोता जागता है, उसको सपने भी शिखर के आते हैं वो जीता मरता भी शिखर के लिए है । 1953 के पहले से दुनिया के कई साहसी पर्वतारोही सबसे ऊंची चोटी को फतह करने में असफल रहे  थे और सैकड़ों ने अपनी जान गंवा दी थी । एडमंड हिलेरी और तेनजिंग नोर्के ने सबसे पहले फतह हासिल की थी । 8849 मीटर ऊंची चोटी पर चढ़ना श्रेष्ठतम शारीरिक और मानसिक ताकत की आजमाइश है । इंसान  हमेशा रोमांच करता रहा है । एवरेस्ट चढ़ने का ख्वाब देखने वाले पैसे जोड़ते हैं(इन दिनों कम से कम ₹ 45 से 50 लाख लग रहे हैं),बेहिसाब शारीरिक श्रम करते हैं भगवान सिंह जी हमारे अपने भोपाल के पहले पर्वतारोही हैं जिनने एवरेस्ट फतह किया है, वो भर दोपहर में पीठ पर 20 किलो तक वजन टांगकर मंडी दीप या उससे आगे तक दौड़ते भागते चले जाते थे । बिना गियर वाली साइकिल से ग्वालियर अपने घर चले गए थे ।  दूसरी क्वालिफिकेशन पर्वतारोही के पास उत्तरकाशी या दार्जलिंग से माउंटेन चढ़ने का कोर्स किया होना चाहिए । ये दोनों कॉलेज सिर्फ जवानों को मतलब 42 साल से कम उम्र वालों को ही बेसिक माउंटेन कोर्स करने का दाखिला देते हैं । हमारे सरदार जी singh parvinder हैं जो उम्र ज्यादा होने पर भी बेसिक एडवांस और सर्च कर आए । असल में वो सरदार हैं फुटबालर हैं और रोजाना ढेर सारा दौड़ते भी हैं । ज्योति जी ने जब पहाड़ों के ख्वाब देखे तब तक कोर्स की उमर निकल चुकी थी । पर उनने ख्वाब लगातार जीवित रखा । कई देश और सभी महाद्वीप की 14 चोटियां इससे पहले वे फतह कर चुकी थीं । 2024 की सर्दियों में किसी मैराथन में मिलीं तो 42 किमी दौड़ने के बाद भी तरो ताजा थीं ।  शारीरिक समर्पण और मानसिक दृढ़ता के बिना एवरेस्ट फतह नहीं होता । एवरेस्ट मूवी देखने के बाद ही कई कमज़ोर दिल घबरा जाते हैं और एवरेस्ट बेस कैंप का भी ख्वाब देखना छोड़ देते हैं ।
    सामान्यतः एक ट्रेकिंग एजेंसी के द्वारा एवरेस्ट सम्मिट बुक करना होता है । बुकिंग राशि 25 लाख  रु से प्रारंभ होती है जो कि अमेरिकन डॉलर में भुगतान किए जाते हैं । यदि आप बहुत मशहूर शेरपा के साथ समिट करना चाहते हैं तो अलग से कीमत चुकानी होती है ।  बुकिंग के समय ही कई अनुबंध होते हैं कौन शेरपा जाएगा, कितनी आक्सीजन लेकर जाएंगे इत्यादि इत्यादि । एवरेस्ट या सागरमाथा की यात्रा के 3 चरण होते हैं पैसे की व्यवस्था करने के अलावा ।
                                  पहला चरण मैदानी हिस्से में शरीर को तपाना और मन को कठिन परिस्थितियों  के लिए साधना होता है । अधिकतर पर्वतारोही मेडिटेशन से मन को पकड़ते हैं । जैसे जैसे शरीर तपता जाता है, मन भी विपरीत स्थितियों के लिए अनुकूलित होता जाता है ।
                                साइक्लिंग स्विमिंग रनिंग जिमिंग सभी कुछ चाहत करवा देती है । इसके अलावा उपयोग में आने वाले गेयर्स , बैग्स , शूज इत्यादि की व्यवस्था और उनको उपयोग करके use to होना शामिल है । दूसरा चरण काठमांडू और बेस कैंप नेपाल से एवरेस्ट बेस कैंप की यात्रा का होता है ।
                                  नेपाल से एवरेस्ट बेस कैंप की यात्रा दुनिया भर के ट्रेकिंग प्रेमियों के लिए एक सपने जैसी होती है। यह यात्रा हिमालय की खूबसूरत पहाड़ियों, बर्फ से ढके पहाड़ों और अद्वितीय नेपाली संस्कृति का अनुभव करने का मौका देती है। इस यात्रा का मुख्य आकर्षण 8,848 मीटर ऊंचा माउंट एवरेस्ट है, जो विश्व का सबसे ऊंचा पर्वत है। एवरेस्ट के लिए तो बहुत कम यात्रा अनुमति दी जाती है किंतु ट्रेकिंग प्रेमियों के लिए बेस कैंप का ट्रैक करना भी चुनौती पूर्ण रहता है । दम खम पता चल जाता है बेस कैंप तक ही ।  कई बार इसके बारे में पढ़ा  बल्कि ये कहूं जब एवरेस्ट या बेस कैंप का संस्मरण मिलता है चाट जाता हूं उसको । ज्योति जी के बहाने आपको एवरेस्ट तक की यात्रा करवा देता हूं और उसकी कठिनाई से रूबरू भी करवा देता हूं ।
                                    एवरेस्ट अभियान दो तरफ से होता है एक तिब्बत की तरफ से जो अब  चीन का भाग है और दूसरी नेपाल से । ज्योति ji ने नेपाल से राह पकड़ी थी तो हम भी ज्ञान नेपाल की तरफ से ही बघारेंगे ।पहले बात बेस कैंप तक की
                                 बेस कैंप tak एक सामान्य ट्रेक होता है और एक गोक्यो री ग्लेशियर से होकर पहुंचता है । तापमान बेस कैंप तक सामान्यतः -20  डिग्री सेंटीग्रेड तक नीचे जाता है । ख़तरनाक लुकला हवाई अड्डा, नामचे बाजार तेंगबोचें इत्यादि को पार करके बेस कैंप पहुंचते हैं । बेस कैंप से जब क्लियर क्लाइमेट विंडो मिलती है तब पर्वतारोही ऊपर के कैंपस की तरफ प्रस्थान करते हैं ।
                                5400 मीटर पर खुम्बू ग्लेशियर पर पहला कैंप होता है। कुछ एजेंसियां बेस कैंप से आधी दूरी तक पर्वतारोही को चढ़ाते उतारते हैं जिससे वो एक्लिमेटाइज हो जाए । और शरीर मोशन में रहे ।
    कैंप 2 – 6,400 मीटर (एडवांस बेस कैंप)
    स्थान: पश्चिमी कुम के केंद्र में।
    इसे “एडवांस बेस कैंप” भी कहा जाता है।
    यहां स्थायी टेंट लगाए जाते हैं और यह मुख्य ऑपरेशन का केंद्र होता है।
    पर्वतारोहियों को इस ऊँचाई पर कुछ दिन रुककर acclimatization करके ही आगे बढ़ना होता है।
    कैंप 3 – 7,200 मीटर (ल्होत्से फेस पर)
    स्थान: ल्होत्से फेस की ढलान पर।
    यह खड़ी बर्फीली चट्टानों के बीच स्थित होता है।
    ऑक्सीजन का स्तर बेहद कम हो जाता है, और यहां से शारीरिक और मानसिक सहनशक्ति का असली परीक्षण शुरू होता है।
    यहां से पर्वतारोही ऑक्सीजन सिलिंडर का इस्तेमाल शुरू कर देते हैं ।
    कैंप 4 – 7,950 मीटर (साउथ कोल)
    स्थान: एवरेस्ट और ल्होत्से के बीच।
    इसे “डेथ जोन” (मृत्यु क्षेत्र) के प्रवेश द्वार के रूप में जाना जाता है।
    यहां ऑक्सीजन का स्तर इतना कम हो जाता है कि लंबे समय तक रुकना खतरनाक हो सकता है।
    यह शिखर अभियान (summit push) की तैयारी का अंतिम कैंप है।
    साउथ समिट ही वो अंतिम पड़ाव है जहां से शिखर मात्र 700 मीटर दूर रह जाता है । यहां से पर्वतारोही रात 12 से 1 बजे के बीच निकलता है हिलेरी स्टेप क्लियर करनी रहती है समिट करके कैंप 3 तक वापिस भी आना होता है । ये ट्रैक सामान्यतः 30 घंटे लम्बा होता है । इसी कैंप से 2023 में ज्योति जी वापिस लौट गईं थीं।
    19 मई 2024 की भोर जब ज्योति रात्रे शिखर पर पहुंची तो उससे पहले भी कुछ लोग सागरमाथा के गले लग चुके थे पर ज्योति जी के लिए सागरमाथा ने अपने दोनों हाथ फैलाए और गले से लगा लिया बोला प्रकृति ने मुझे ऐसा बनाया है कि मैं झुक नहीं सकता, जैसे राम जी से समुद्र ने कहा था , उसी तरह पहाड़ सागरमाथा ने ज्योति जी को कहा मैं अंक में आपको समेट  सकता हूं ,आलिंगन कर सकता हूं । ज्योति लोग मुझ तक आकर गर्वित होते हैं मैं तुमसे मिलकर अभिभूत हुआ। मुझे तुम पर गर्व है,इंसानियत तुम्हीं से है इसका परचम झुकने मत देना ।इंसानियत को रोशन करती हुई ज्योति वापिस आ गईं ।
    सफलता कभी एक व्यक्ति की नहीं होती है । और सफलता एक दिन में नहीं आती ।  एक ख्वाब देखने के बाद जिद करनी होती है स्वयं से लड़ने की, स्वयं के आलस से लड़ने की,दुनिया भर के प्रलोभनों को नजरअंदाज करने की । फिर भाग्य से एक जीवन साथी या पार्टनर मांगना होता है जो  आपके समर्पण की कद्र करे और मदद करे । जब रात्रे ji से मेरी मुलाकात हुई तो मैंनेउनसे पूछा जब 2023 में बिल्कुल शिखर के नजदीक से ज्योति जी वापस आ गई, पैसा श्रम ख्वाब सब उसे वक्त समाप्त हो गए । आपकी क्या प्रतिक्रिया थी,  रात्रि जी बोले मैं उसके निर्णय में शामिल था और सहमत भी,  जो निर्णय लिया जा चुका है उसे पर प्रश्न चिह्न नहीं खड़ा करना चाहिए । आप सोचिए यह भी ज्योति जी के लिए वरदान है, नहीं तो लोग एक प्याली टूटने पर आपा खो देते हैं ।  ज्योति रात्रे की सफलता को सलाम है पर एक प्रार्थना उन सभी ख्वाब देखने वालों के लिए भी उन्हें ज्योति जी जैसा समझदार पार्टनर मिले । सफलताएं सांझी होती हैं और असफलता व्यक्तिगत ।
    साल भर पहले गर्मी की दुपहरी में जब ज्योति जी ने हम सब से सफलता की बात शेयर की तब इस लेख की रूप रेखा बनी थी पर मेरा आलस इस एक साल को खा गया । इस बीच ज्योति जी अंटार्कटिका की सबसे ऊंची चोटी winson के हायर कैंप तक अभियान भी कर आई हैं । नित नई ऊंचाई ज्योति रात्रे हासिल करें । यहां यह उल्लेखनीय है कि 50 वर्ष से अधिक की मुट्ठी भर महिलाओं ने दुनियाभर से एवरेस्ट फतह किया है और ज्योति रात्रे भारत से प्रथम महिला हैं  ।
    बधाई ज्योति जी,हमें स्वयं पर गर्व है कि आपसे जुड़े हैं ।
    नोट अंतिम फोटो सागरमाथा के पास हुई कैजुअल्टी की हैं और वहां अभी भी पर्वतारोहीयों की बॉडी मौजूद हैं जो एवरेस्ट की विकटता को प्रदर्शित करती है । बाकी सभी फोटो ज्योति रात्रे जी की fb वाल से लिए हैं ।

     

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