देवेश शर्मा
मुरैना 15 अप्रैल ;अभी तक ; जिले के जौरा तहसील मुख्यालय स्थित गांधी सेवा आश्रम रविवार को एक ऐतिहासिक और भावनात्मक पल का साक्षी बना, जब चंबल के बीहड़ों से आत्मसमर्पण कर समाज की मुख्यधारा में लौटे पूर्व डकैत 53 साल बाद एक बार फिर एकत्र हुए। यह विशेष मिलन समारोह गांधीवादी विचारक डॉ. एसएन सुब्बाराव की याद में आयोजित किया गया, जिनकी गांधीवादी सोच और अथक प्रयासों ने चंबल में शांति स्थापित करने में ऐतिहासिक भूमिका निभाई थी।
बता दें कि, 1970 के दशक में चंबल घाटी डकैतों का गढ़ मानी जाती थी। यहां माधौ सिंह, मलखान सिंह जैसे कुख्यात डकैतों के नेतृत्व में करीब 654 गिरोह सक्रिय थे। मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश और राजस्थान की पुलिस भी इनसे परेशान थी, और बीहड़ों में इनका पीछा करना लगभग असंभव था। आमजन, व्यापारी और ग्रामीण इनसे भयभीत रहते थे।
ऐसे कठिन समय में डॉ. एसएन सुब्बाराव ने गांधीवादी सिद्धांतों को अपनाते हुए इन डकैतों को मुख्यधारा में लाने का संकल्प लिया। उन्होंने गांव-गांव जाकर और बीहड़ों में पैदल जाकर डकैतों से संपर्क किया, उन्हें अहिंसा और समाजसेवा का महत्व समझाया। उनके दृढ़ संकल्प और निरंतर संवाद ने डकैतों ने आत्मसमर्पण कर दिया था।
डकैतों ने आत्मसमर्पण से पहले सरकार के सामने कुछ शर्तें रखीं- खुली जेल में परिवार के साथ रहने की अनुमति, कृषि भूमि का आवंटन और परिवार के सदस्यों को नौकरी देने की मांग प्रमुख थी। तत्कालीन सरकार ने इन मानवीय शर्तों को स्वीकार करते हुए डकैतों को एक नया जीवन शुरू करने का अवसर दिया।
14 अप्रैल 1972 को जौरा के गांधी आश्रम में, हजारों लोगों की उपस्थिति में और मुख्यमंत्री एवं राज्यपाल की मौजूदगी में इन डकैतों ने गांधी प्रतिमा के सामने अपने हथियार डाल दिए। यह पल इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ बन गया, जब हिंसा का रास्ता छोड़कर शांति की राह चुनी गई।
आज, 53 साल बाद, उसी स्थान पर आयोजित मिलन समारोह में पूर्व डकैतों ने अपने परिवारों के साथ भाग लिया। इस आयोजन का उद्देश्य था डॉ. सुब्बाराव के योगदान को याद करना और यह संदेश देना कि परिवर्तन संभव है, बस जरूरत है सही मार्गदर्शन और सहयोग की।
पूर्व डकैतों ने अनुभव किए साझा
पूर्व डकैतों ने मंच से अपने अनुभव साझा किए और उस दौर की कठिनाइयों को याद किया। उन्होंने बताया कि आत्मसमर्पण के बाद किस प्रकार उन्होंने जीवन को नए सिरे से शुरू किया, बच्चों की शिक्षा पर ध्यान दिया और आज वे सामान्य नागरिकों की तरह शांतिपूर्ण जीवन जी रहे हैं।यह गांधीवादी विचारधारा की जीत
इस कार्यक्रम में वक्ताओं ने डॉ. सुब्बाराव की निष्ठा और गांधीवादी सिद्धांतों की शक्ति पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि यदि संवाद और करुणा से काम लिया जाए तो सबसे कठोर हृदय भी पिघल सकता है। यह मिलन समारोह न केवल चंबल क्षेत्र के इतिहास में एक पुनः स्मरणीय पल था, बल्कि यह भी साबित करता है कि सामाजिक परिवर्तन किसी भी स्तर पर संभव है।