प्रदेश

विद्युत मंडल के लापरवाही से ग्रामीण परेशान ,अंधेरे में जीने को मजबूर

महावीर अग्रवाल 
मन्दसौर २७ सितम्बर ;अभी तक ;     कोटडा बुजुर्ग /बोलिया/ पावटी ग्रामीण क्षेत्रों में इन दोनों घोषित विद्युत कटौती के प्रकरण सामने आ रहे हैं तीन-चार घंटा लाइट बंद होना एक आम बात हो गई है, वैसे तो घोषित कटौती मानसून रिपेयर के नाम पर गाहे: ब:गाहे हो रही है ।
पर अघोषित कटौती का भी कोई हिसाब किताब नहीं है ,विद्युत मंडल के कर्मचारी और अधिकारी कोई संतोषप्रद जवाब नहीं दे पाते हैं कि आखिर पावटी से लगाकर बोलिया कोटडा बुजुर्ग कोटडा खुर्द जो कि क्षेत्रीय विधायक चंदर सिंह सिसोदिया का गांव है यहां भी अघोषित कटौती होना आम बात हो गई है।
किसान  मजदूर दिनभर थक हार कर मेहनत करके शाम को घर पहुंचते हैं तो अंधेरा उनके स्वागत में पहले ही खड़ा होता है, महिलाएं अपनी थकान के बावजूद खाना बनाने के लिए लाइट का इंतजार करते रहती है पर लाइट है कि आने का नाम नहीं लेती।
थक हार कर पुराने दिए चिमनिया ढूंढते हैं पर वह भी नदारद मिलते हैं, मोबाइल की थोड़ी बहुत लाइट बच्ची होती है तो वह खाना बनाने की कोशिश करती है पर संभव नहीं हो पाता। जब किसान मजदूर का परिवार जैसे तैसे कच्ची पक्की रोटियां खाकर थकान से चूर होकर नींद की आगोश में जाने को तैयार होते हैं और जब उन्हें नींद आती है तब विद्युत मंडल को याद आता है कि गांव में लाइट बंद है तब कहीं जाकर वे लाइट चालू करते हैं। पर तब तक किसान निद्रा देवी की गोद में समा जाते हैं।
नहीं उठाते फोन-
अधिकारियों से लगाकर विद्युत मंडल के कर्मचारी पहली बात तो फोन उठाते नहीं है और उठा भी ले तो एक रटा रटाया जवाब है की फाल्ट आ गया है।
यह फॉल्ट पावटी, जूना पानी, बोलिया ग्रिड पर ही क्यों आता है?
गरोठ शामगढ़ जैसे नगर पालिका नगरपरिषद क्षेत्र फाल्ट क्यों नहीं आते ?
गांव में रहना खेतीहर मजदूर किसानों की मजबूरी है वे शहर में नहीं बस सकते इसलिए उनकी जिंदगी क्या जिंदगी नहीं है? जनप्रतिनिधि भी इन क्षेत्रों में रहते हैं पर उनके यहां तो इनवर्टर लगे हैं वह मजदूर और किसानों का दर्द नहीं समझते और समझते होते तो अभी तक गरोठ रेलवे स्टेशन पटरी के इस पार राजस्थान तक का इलाका इस प्रकार की अघोषित कटौती का शिकार नहीं होता।
कभी-कभी तो सब इंजीनियर और डिविजनल इंजीनियर को पता ही नहीं होता कि मेरे क्षेत्र में कहां-कहां लाइटें बंद है ।जो उनको कॉल लगाया जाता है तो सिर्फ एक ही रटा रटाया जवाब हम दिखाते हैं क्या गड़बड़ है और वह गड़बड़ क्या है वर्षों  बाद भी आज तक पता नहीं चली।
ग्रामीण किसान और मजदूरों के साथ सौतेला व्यवहार-
आखिर गांव के साथ ही सौतेला हुआ क्यों हो रहा है ,क्योंकि किसान मजदूर आंदोलन नहीं करते वह मेहनतकश होने के कारण जैसा तैसा अंधेरे में भी अपने जीवन जीने के लिए मजबूर हो चुके हैं और यही कटौती अगर शहरी क्षेत्र में होती तो हा हा कार मच जाता, सभी समाचार पत्रों की हेडलाइन बन जाती तो विद्युत विभाग की नींद खुल जाती है पर ग्रामीण क्षेत्रों में आज से नहीं वर्षों से यही स्थिति बनी हुई है पर कोई भी आंदोलन करने की स्थिति में नहीं है।
चुनाव के समय याद आते आंदोलन- नेताओं और जनप्रतिनिधियों को सिर्फ चुनाव के समय ही आंदोलन  याद आते हैं  उसके बाद ग्रामीण जनता की के जीवन से उन्हें कोई सरोकार नहीं है, जनता किसान मजदूर सिर्फ नेताओं के वोट के लिए अन्नदाता जैसी और न जाने क्या-क्या उपाधियां दे दी जाती हैं। जहरीले जानवर काटने से कई दुर्घटनाएं क्षेत्र में हो चुकी है पर जनप्रतिनिधियों की उदासीनता ही विद्युत मंडल के अधिकारियों को लापरवाह और अकर्मण्य बना रही है।
अगर जन प्रतिनिधि जागरूक होते तो इतने वर्षों से ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को घोषित अघोषित कटौती का सामना नहीं करना पड़ता।
एक उदाहरण-
26 सितंबर की शाम 6:00 बजे से गई लाइट 27 को सुबह 3:00 बजे तक आई, तब तक भारी उमस और गर्मी के साथ ही मच्छरों का प्रकोप इतना अधिक था कि छोटे बच्चे और सीनियर सिटीजन का तो सोना मुश्किल हो गया।
पूरे मोहल्ले में छोटे बच्चों करुण  क्रंदन मध्य प्रदेश विद्युत मंडल की लापरवाही की कहानी बयां कर रहा था,27 सितंबर को भी दिन में तीन बार अघोषित कटौती और एक बार घोषित कटौती हुई, आखिर मुख्यमंत्री जब कह रहे हैं कि एक भी पोल गांव में ऐसा नहीं हो जिस पर लाइट नहीं लगे, पर जब लाइट ही नहीं आए तो पोल पर कितने ही बल्ब लगा दो जलेंगे कहां से?
जब तक विद्युत मंडल के कर्मचारियों पर अधिकारियों पर लगाम नहीं लगेगी तब तक ग्रामीण क्षेत्र में विद्युत मंडल का हाल बेहाल ही रहेगा।

 


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