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आजादी हासिल हुये 70 साल बाद एक गांव ऐसा जहाँ एक भी बुनियादि सुविधा नहीं पहुंची

आनंद ताम्रकार

बालाघाट 9 जनवरी ;अभी तक ;  आजादी हासिल हुये 70 साल से भी ज्यादा गुजर गये लेकिन आदिवासी बाहुल्य नक्सल प्रभावित बालाघाट जिले में एक ऐसा गांव भी है जहां ना तो बिजली है ना तो पेयजल का कोई साधन है ना तो स्कूल है और तो और पहुंचने के लिये कोई सड़क भी नही है।

ऐसी बदहाली के चलते गांव के लोगों की 3 से 4 पीढ़ियां गुजर गई उन्होंने स्कूल में कदम ही नही रखा इस गांव में के लिये केवल पंगडडी है वह भी इतनी सकरी और पत्थरों से पटी हुई है की 2 पहिया वाहन से पहुंचना भी मुश्किल है।

ऐसा गांव जिसका कुन्डुल है जो बैहर विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है जहां से संजय उइके तीसरी बार विधायक हैं उनके पहले उनके पिता गणपत सिंह उइके विधायक रहे और सरकार में मंत्री भी बने लेकिन इनकी नजर से यह गांव अब तक ओझल बना हुआ है गांव में रहने वालों को इतना भी पता नही है की उनका विधायक कौन है।

जिला मुख्यालय बालाघाट से 90 किलोमीटर दूर कुन्डुल गांव का चकवाटोला नक्सल प्रभावित क्षेत्र में आता है जो घने जंगलों से घिरा हुआ है उसमें 15 परिवार अपनी जिंदगी बसर कर रहे है। इस गांव में आज तक कोई भी सरकार योजना नहीं पहुंची बिजली ना होने से यहां के आदिवासी रात भर घने अंधेरे में रहने के लिये विवश है और देर शाम होते ही अपने घरों में कैद हो जाते है। प्रशासन की इतनी बड़ी लापरवाही और अनदेखी की मिसाल कई ओर देखने नहीं मिलेगी।

ग्रामीणों ने बताया कि बीमार होने पर इलाज की कोई सुविधा नहीं उनके गांव से करीब मे स्वास्थ्य केन्द्र सोनगुड्डा में है जहां पैदल चलकर ही पहुंचा जा सकता है। बिमार होने पर प्राइवेट डॉक्टर को जाकर लाना पड़ता है इसके एवज में उसे तगड़ी फीस देनी पड़ती है।

इन आदिवासियों का जीवन वनोपज पर ही निर्भर है जिसे बेचकर अपना जीवन यापन कर रहे है रोजगार के कोई साधन नहीं है। इन विसंगतियों चलते आखिर संवेदनशील कहे जाने वाला प्रशासन बदहाल जिंदगी जी रहे कुन्डुल गांव के आदिवासियों की सुध कब लेगा और सरकारी योजनाओं की दस्तक उन तक कब पहुंचेगी।

इन दिनों बर्फीली हवाओं के थपेड़े और हाडकपा देने वाली ठंडी में बच्चे महिलायें बिना गर्म कपड़ों के खुले बदन जलती लकडी की आग के सहारे ऐसा ही जीवन जीने के लिये मजबूर है।

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