खजुराहो सीट पर संघर्ष  जीत के  अंतर का  

रवीन्द्र व्यास 

 प्रदेश की चर्चित लोकसभा सीट  खजुराहो  सहित बुंदेलखंड की लगभग सभी सीटों पर कांग्रेस ने  बीजेपी    को वाक ओवर सा दे दिया है | प्रत्याशियों को लेकर पार्टी  में ही अशंतोष देखने को मिल रहा है | नतीजतन लोग या तो पार्टी छोड़ रहे हैं या फिर घर बैठ कर चुनावी संघर्ष का आनंद  ले रहे हैं | खजुराहो लोकसभा सीट बीजेपी के लिए प्रतिष्ठा पूर्ण सीटों में से एक है | यहाँ से बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष वी डी शर्मा सांसद हैं और पार्टी के प्रत्यासी भी हैं | उनसे मुकाबले के लिए कांग्रेस ने यह सीट गठबंधन के तहत सपा को सौंप दी | सपा ने यहां से मनोज यादव को , वही बसपा ने कमलेश पटेल को प्रत्याशी बनाया है | 

                                    दिल्ली ,भोपाल और लखनऊ में बैठ  कर सियासी आकलन करने वाले  राजनैतिक पंडित  दावा कर रहे हैं कि खजुराहो लोकसभा सीट पर मुकाबला दिलचस्प होगा |  पर जमीनी हकीकत इसके उलट नजर आ रही है | सपा और कांग्रेस के गठबंधन के सियासी समीकरण बताते हैं कि   २०१९ के चुनाव में  बीजेपी के वी.डी. शर्मा को  ८१११३५ (64. ४६ %) मत मिले थे , |  कांग्रेस की महारानी कविता सिंह को ३१८७५३ (२५. ३३ % ) मत और  सपा को ४००७७ ( 3. १८ )फीसदी मत मिले थे |  कांग्रेस और  सपा  के मत  प्रतिशत को भी अगर जोड़ा जाए तो यह आंकड़ा  28. 51  फीसदी पर पहुंचता है |  छतरपुर , पन्ना और कटनी जिले तक फैली इस लोकसभा सीट के आठों विधानसभा क्षेत्र पर बीजेपी का कब्जा है |

 समाजवादी पार्टी ने जिन मनोज यादव को खजुराहो संसदीय सीट से मैदान में उतारा है , उनको २०२३ के विधानसभा चुनाव में छतरपुर जिले की बिजावर विधानसभा से सपा से टिकट दिया गया था | बाद में उनके स्थान पर रेखा यादव को प्रत्याशी बनाया गया था , बाद में रेखा यादव ने ें वक्त पर अपना नाम वापस ले लिया था | मनोज जी का बुंदेलखंड अंचल से भले ही कोई जुड़ाव ना हो पर वे  उत्तर प्रदेश के मूल निवासी होने के नाते अखिलेश यादव के नजदीकी माने जाते हैं |  भोपाल में रहकर उन्होंने यादव समाज के लिए कार्य किया है | जिसके चलते  उनकी बीजेपी और कांग्रेस के सजातीय  बन्धु  बांधवों से निकटता बताई जाती है |

 इस चुनाव में सपा और कांग्रेस का जातीय जनगरणा का फार्मूला इस्तेमाल कर चुनाव में पिछड़ा और अगड़ा का  सियासी दांव खेला जायगा | इसके अलावा बेरोजगारी ,महंगाई ,भ्रष्टाचार और खतरे में लोकतंत्र की दुहाई दी जायेगी |   यह कितना असरकारक होगा इसकी बानगी जनता प्रदेश के विधान सभा चुनाव में देख चुकी है | पर इतना तो तय है कि कुर्सी के लिए समाज में नफरत का जहर घोलने में कोई पीछे नहीं रहेगा |

 कांग्रेस में पनपता असंतोष 

  आजादी के बाद से  अब तक हुए  लोकसभा के हर चुनाव में  यहां से कांग्रेस प्रत्याशी चुनावी मैदान में रहा | यह पहला मौका है जब कांग्रेस ने यह सीट सपा को दे दी है | मोदी जी को हारने और वोटों के ध्रुवीकरण को रोकने के लिए कांग्रेस की यह राजनैतिक रणनीति हो सकती है | परन्तु क्या यह रणनीति  हर जगह उपयुक्त मानी जा सकती है? यह बड़ा सवाल है और यही सब बात कांग्रेस के दिग्गज नेता कर रहे हैं | कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व के इन कदमो से हताश हो कर लोग पार्टी छोड़ बीजेपी का दामन थाम रहे हैं |   हाल ही में २८ मार्च को अपने हजारों समर्थकों के साथ कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व विधायक   ने  अपने ही  कांग्रेस  से नाता तोड़ कर बीजेपी का दामन थाम लिया | खजुराहो ही नहीं टीकमगढ़ संसदीय क्षेत्र में उनका अच्छा खाशा प्रभाव माना जाता है |  

 सियासत के इन समीकरणों को देख कर कहा जाने लगा है कि बीजेपी  की हर बूथ पर जित की योजना कामयाब हो जायेगी जिसके चलते जीत  का अंतर बढ़ सकता है |