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चातुर्मास की अवधि में धर्मालुजन जिनवाणी श्रवण करें, धर्म आराधना तपस्या कर जीवन को पावन बनाये- साध्वी श्री रमणीक कुंवरजी म.सा.

महावीर अग्रवाल 

मन्दसौर २० जुलाई ;अभी तक;  चातुर्मास के चार माह की अवधि जैन धर्म में विशिष्ठ महत्व रखती है। इस अवधि में हमें जिनवाणी को श्रवण करने का लगातार चार माह तक अवसर मिलता है। जिनवाणी को श्रवण कर अपने जीवन को सद्मार्ग की और प्रेरित कर हम अपना मनुष्य जन्म सार्थक कर सकते है। इसलिये चातुर्मास की चार माह की अवधि में हम सभी को धर्म आराधना, तप तपस्या से जुड़ना है।
                                         उक्त उद्गार परम पूज्य जैन साध्वी श्री रमणीककुंवरजी म.सा. ने शास्त्री कॉलोनी स्थित जैन दिवाकर स्वाध्याय भवन में आयोजित धर्मसभा में कहे। बड़ी संख्या में उपस्थित स्थानकवासी जैन समाज के धर्मालुजनों को चातुर्मास के प्रथम दिवस शनिवार को उन्होंने कहा कि यदि हमें अपनी आत्मा को परमात्मा के प्रति समर्पित करना है तो जिनवाणी को श्रवण करना ही पड़ेगा। जिनवाणी को श्रवण करने के लिये प्रतिदिन स्थानक में या जहां भी साधु साध्वी विराजित हो वहां जाये और उनके प्रवचन श्रवण करे जिस प्रकार व्यापार करना है तो उसे सीखना जरूरी है। उसी प्रकार हमें अपनी आत्मा को परमात्मा बनाना ह तो जिनवाणी का नियमिति श्रवण करना ही पड़ेगा। चातुर्मास के चार माह का समय हमें अवसर दे रहा है कि हम जिनवाणी  को श्रवण करें।
साध्वी श्री चंदनाश्रीजी म.सा. ने कहा कि जब तक हमारी जेब भारी है अर्थात हमारे पास धन है तब तक ही सांसारिक रिश्ते साथ देते है। धन खत्म होते ही वे हमसे किनारा कर लेते है। इसलिये जीवन में आत्मीय सुख पाना है तो चिंतन मनन करे और जीवन को पुनीत कार्यों में लगाये। धर्मसभा का संचालन पवन पोरवाल (एच.एम.) ने किया।

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