*प्रमोशन को अस्वीकार करने वाले कर्मचारियों अधिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई होना चाहिए*   

*रमेशचन्द्र चन्द्रे*
    मंदसौर १६ जनवरी ;अभी तक;   प्रमोशन को अस्वीकार करने का कोई कानून नहीं है  यह ऊपर ऊपर चलने वाली व्यवस्था है इसलिए मध्य प्रदेश विधानसभा में एक सख्त कानून बनाने की आवश्यकता है।
                          प्रमोशन की चाहत किसे नहीं होती, इसे बेहतर काम और तरक्की की सीढी माना गया है। लेकिन सरकारी विभाग में ऐसे भी कर्मचारी है जो पदोन्नति नहीं चाहते इसमें लिपिक से लेकर अफसर तक शामिल है। विभाग उन्हें प्रमोशन देकर आगे बढ़ाना चाहता है लेकिन यह लोग प्रमोशन को अपने नफा- नुकसान के तराजू पर तौलकर देखते हैं और हमें प्रमोशन नहीं चाहिए बोल रहे हैं। कई बार तो प्रमोशन की सूची जारी होने के बाद भी नए स्थान पर ज्वाइन नहीं करते।
                       ऐसे में प्रदेश के कई जिलों के अहम पदों पर ट्रांसफर- पोस्टिंग के  पेंच  भी फंसने लगे है,  इसके बाद अनेक  विभागों ने ऐसे निर्देश भी  जारी किये कि ऐसे कर्मचारी जो प्रमोशन अस्वीकार कर रहे हैं उनसे हर हाल में शपथ पत्र लिया जाए कि वह कभी पदोन्नति की मांग नहीं करेंगे किंतु ऐसे निर्देशों की न्यायालय में धज्जियां उड़ गई।
      अभी तक यह व्यवस्था है कि वर्तमान में किसी भी कर्मचारी अथवा अधिकारी को केवल तीन बार पदोन्नति  अस्वीकार करने का अधिकार है पर इसका कोई कानूनी आधार नहीं है यह सब ऊपर ऊपर चल रहा है इसी प्रकार इसका कोई  लिखित आधार “(Dopt) कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग” में भी नहीं है।
      किंतु मध्य प्रदेश में भी उक्त गैर कानूनी नियम लागू होने से अनेक कर्मचारी और अधिकारी अपने प्रमोशन को स्वीकार नहीं करते और बार-बार अनेक पारिवारिक कठिनाई जिसमें माता-पिता बीमार, पत्नी बीमार, बच्चा बीमार, अथवा स्वयं की शारीरिक अक्षमता,एवं  अपनी अस्थिर मानसिक अवस्था का हवाला देकर अपने प्रमोशन को ठुकरा देते हैं जिसके कारण अनेक महत्वपूर्ण पदों पर प्रभारी अधिकारी और कर्मचारियों से काम चलाना पड़ता है, जिससे सरकारी कामकाज बुरी तरह प्रभावित हो रहा है।
     अकसर कर्मचारी और और अधिकारी प्रमोशन को इसलिए स्वीकार नहीं करते क्योंकि उन्हें जिम्मेदारी से बचना होता है अथवा यदि लाभ का पद नहीं है तो वह वहां जाना नहीं चाहते इस कारण अनेक विद्यालय एवं  महाविद्यालय तथा शासन के विभिन्न विभागों में अथवा सामान्य प्रशासन के कार्यालयों में पूर्ण अधिकार युक्त अधिकारी नहीं है तथा उनके स्थान पर प्रभारी नियुक्त किए जाते हैं जो बार-बार बदले जाते हैं तथा ये प्रभारी अधिकारी निर्णय लेने में कमजोर सिद्ध  होते हैं, इस कारण सरकारी कामकाज एवं स्कूल कॉलेज का प्रशासन पूरी तरह लंच-पुंज हो रहा है एवं ब्यूरोक्रेसी जनता पर हावी होती जा रही है और इसके साथ ही जनता को सरकारी सुविधाओं का लाभ तीव्र गति से नहीं मिल पा रहा है।
      अतः मध्य प्रदेश शासन को अपने कानून में यह  संशोधन करना चाहिए या नया कानून बनना चाहिए कि किसी भी कर्मचारी को अपने कार्यकाल में केवल एक बार प्रमोशन को  अस्वीकार करने का अधिकार हो सकता है किंतु बाद में प्रमोशन को  अस्वीकार करने का अधिकार नहीं रहेगा और यदि कोई कर्मचारी अधिकारी प्रमोशन को स्वीकार नहीं करते हैं तो उनको तीन माह का नोटिस अथवा वेतन देकर उनकी सेवाएं तत्काल प्रभाव से समाप्त करना देना चाहिए।
       यदि उक्त कानून को बनाया जाता है तो प्रदेश के समस्त कार्यालयों एवं शासकीय संस्थानों को एक “पूर्ण अधिकार” प्राप्त अधिकारी उपलब्ध होंगे और सरकारी कामकाज की गति तेज होगी।