खंडवा २९ अक्टूबर ;अभी तक; 16वी शताब्दी के निगुणी एव चमत्कारी संत सिंगाजी पर आयोजित मेले के 6वे दिन शनिवार को मुख्य दिवस होने से करीब1 लाख सेे अधिक श्रद्धालुओ ने समाधि पर मतथा टेककर दर्शन पूजन को अपने को धन्य किया। शरदपूर्णिमा पर यहां भी एक घंटे 17 मिनट तक आंशिक चंद्रग्रहण रहा। भूगोल वैज्ञाानिको ने कहा कि इस दौरान चांद की चमक प्रभावित रही। चमकीली चांदनी के लिए जाना जाने वाला शरद पूर्णिमा का चांद (28 अक्तूबर) मध्यरात्रि में अपनी चमक रात्रि में ,खेाता रहा। खुूले आसमान में दूध रखने की पंरपरा ग्रहण के कारण प्रभावित रही।माना जाता है कि शरदपूर्णिमा रात्रि में चन्द्रमा की किरणोंक े कारण दूध अमृत तुल हो जााता हैऔर अबले दिन सुबह इसका सेवन किया जाता है लेकिन ग्रहण काल रात 1.04 बजे मध्य रात्रि बाद आरंभ हुआ ओर इसकी समयावधि करीब 4 घण्ब्े से अधिक रही।
उधर ग्रहण काल मे सभी मंदिरों के गर्भगृह के पट बंद रखे गये। ें श्रद्धालुओं की दर्शन व्यवस्था भी बाधित रही। लेंकिन खंडवा का एक मंदिर ऐसा भी है जहां किसी तरह के ग्रहण का कोई असर नही पड़ता, चाहे देश भर में सूर्य ग्रहण लग रहा हो या चंद्रग्रहण।. यहां के प्रसिद्ध श्री दादाजी धाम मंदिर ।ं रोजाना की तरह ही नैवेद्ध चढ़ाया गया आरती के साथ ही भक्तों के लिए दर्शन व्यवस्था सुचारू रही।यहां बड़े दादाजी महाराज सहित छोटे दादाजी महाराज की समाधि स्थल है जोकि भक्तों की आस्था का केंद्र है।. दादाजी के भक्तों के लिए यह मंदिर चैबीस घंटे और सातों दिन खुला रहता है.। खंडवा के इस मंदिर की खास बात यह है कि यह देशभर में इकलौता ऐसा मंदिर है जोकि ग्रहण काल में भी इसी तरह श्रद्धालुओं के लिए खुला रहता है ।जैसे आम दिनों में इस मंदिर में किसी भी ग्रहण के प्रभाव को नहीं माना जाता है और यहां ग्रहण काल में भी श्रद्धालु आम दिनों की तरह ही दर्शन करने पहुंचते है.।
श्री लक्ष्मीनारायण मंदिर के पुजारी पंडित लक्ष्मीदास दाधीच ने बताया कि मध्यप्रदेश में लगभग सभी मंदिर इस दौरान बंद रहें।ं दर्शन प्रतिबंधित रहे। रविवार सुबह ही मंदिर धोकर पूजा पाठ के बाद पट क्षोले गये।
शनिवार को होने वाला खंडग्रास चंद्रग्रहण भारत में ग्रहण शुरुआत से अंत तक पूरे समय देखे जाने की बात कही गयी है।सूतक काल आरंभ होने से पहले खाने-पीने की चीजों में तुलसी के पत्ते अथवा डाल कुश रखने की परंपरा का निर्वहन घर घर किया जाता रहा।
रात्रि गहण के कारण श्रद्धालु नर्मदा तट के जिले के विभिन्न तटों पर डेला डाले रहे ओर रविवार तडके ग्रहण मोक्ष होने के बाद स्नान- दान- पुण्य- पूजा उपासना इत्यादि में व्यस्त हो गये। प्रमुख रूप से ओंकारेश्वर मोरटकका सिंगाजी बलडी नम्र्रदानगर सहित अनेक स्थानों पर स्नान ेके लिये भीड रही। स्नान के बाद भगवान की पूजा उपासना, दान पुण्य करने की परंपरा अपनाने के पीछे पंडितो का मानना है कि ऐसा करने से चंद्रग्रहण के अशुभ प्रभाव कम होते हैं।