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गीता सम्पूर्ण मानव मात्र के उत्थान के ग्रंथ है – वेदांताचार्य गिरिराज शास्त्री

मयंक शर्मा

खंडवा २३ दिसंबर ;अभी तक; श्रीमद् भागवत गीता किसी एक व्यक्ति, परिवार, समाज, देश या धर्म का ग्रंथ नहीं है, बल्कि यह तो संपूर्ण मानव के उत्थान का ग्रंथ है ।  इसे किसी सीमा में नहीं बांधा जा सकता ।   विश्व की सबसे बड़ी मोटिवेशनल बुक अगर कोई है तो वो श्रीमदभगवत गीता है, मानव मात्र को कुंठा से मुक्त करने का, विषाद मुक्त करने का साधन गीता है ।

                                 स्वतंत्रता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, यह मंत्र लोकमान्य तिलक ने भागवत गीता से ही प्रेरणा लेकर इस देश को दिया और यह राष्ट्र हमें स्वतंत्र रूप में प्राप्त हुआ ।  अपने मनोविकारों पर आरोपित अन्यथा रूपों को छोड़कर अपने मूल रूप में आ जाना ही मुक्ति है ।  ईश्वरत्व हमारा मूल स्वरूप है और आनंद ही हमारी मूल स्थिति है, मुक्ति की प्राप्ति ही मानव का मूल अधिकार है ।  रोग तो केवल शारीरिक होते हैं यह आत्मा के नहीं होते हैं ।  हम अपमान से आहत न हो और सम्मान से विचलित ना हो तो परमानंद की स्थिति को प्राप्त कर लेंगे ।  धर्म को जानते हुए भी धर्म को नहीं सीखना, सीखाना यह पाप है ।  स्वार्थ कभी किसी का सगा नहीं होता है ।  जो हिंदू होता है वह दुष्टता,  दुर्विचार, धृष्टता को समाप्त कर सबके जीवन में सार्थकता लाता है, यही हिंदू का मूल गुण है ।  जीतना नहीं लड़ना जरूरी है केवल जीत की ईच्छा रखना ही कुंठित करती है । जीवन में सच को स्वीकार कर लेना ही सबसे बड़ी बात है, सत्य जानने के बाद भी उसके विपरीत कृत्य करना ही कुमति है ।  जो स्वयं के लिए ही सोचता है वहीं राक्षस है,  दैत्य हैं ।  विजय प्राप्ति के लिए स्वयं पर विश्वास होना आवश्यक है।  हमारा कर्म हम करते रहे लेकिन परिणाम समय पर छोड़ दें यही सुमति है । उपरोक्त उद्बोधन देते हुए गीता जयंती के अवसर पर बड़ौदा से पूर्व निमाड़ सामाजिक सांस्कृतिक सेवा समिति के कार्यक्रम में पधारे वेदांताचार्य गिरिराज शास्त्री ने व्यक्त किये ।

 

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