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महिला दिवस विशेष-  ये घर पर शुद्ध खाना बनाती ही नहीं, स्वयं शुद्ध खाद्य पदार्थ उगाती भी हैं

महावीर अग्रवाल 

मन्दसौर  ७ मार्च ;अभी तक;  महिला दिवस पर 45, अग्रसेन नगर, मंदसौर निवासी श्रीमती पुष्पा आलोक वर्मा की कहानी सबसे रोचक एवं प्रेरणादायक है ।  अपने परिवार को सदा स्वयं एवं अपने करियर से अधिक महत्त्व देने वाली पुष्पाजी ने बहुत वर्षों से सोच रखा था कि अपने बेटे के  बड़े हो जाने के बाद वे भी नौकरी करेंगी ।

                                     संयोग यह बना कि बेटे के बड़ा होते – होते कोरोना आ गया ।  उस विभीषिका को इन्होने एवं इनके परिवार ने बहुत गंभीरता से समझा एवं उससे कई आयामों में हर संभव सीख भी ली ।  जब हर मनुष्य अपनी इम्युनिटी बढ़ाने के लिए तरह – तरह के जतन कर रहा था, तो पुष्पाजी बड़े गर्व के साथ सोच रही थीं कि इनका परिवार तो प्रतिदिन हर समय नियमित रूप से घर का ताजा भोजन एवं ताजे फल ही लेता है, इस कारण इनकी इम्युनिटी तो बहुत अच्छी होगी।

लेकिन जब कोरोना गंभीर से गंभीरतर होता गया तो लॉक डाउन के समय गहन अध्ययन एवं चिंतन के दौरान इन्हें समझ आया कि इनके कठिन परिश्रम से तैयार ताजा भोजन एवं परिवार की गाढ़ी कमाई की बचत से ख़रीदे जा रहे ताजे फल तो शरीर में कई हानिकारक रसायनों के प्रवेश का कारण बनते जा रहे हैं।  जब इन्होने जाना कि आजकल की आधुनिक कृषि पद्धति में अनाज, फल, सब्जियों आदि के उत्पादन में प्रयुक्त रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक, खरपतवार नाशक, ग्रोथ प्रमोटर्स आदि ने हमारे भोजन, फलों, दूध एवं यहाँ तक कि नवजात शिशु को मिलने वाले माँ के दूध में भी हानिकारक रसायनों को मिला दिया है तो ये ना सिर्फ आश्चर्यचकित एवं चिंतित हुईं लेकिन स्वयं को अत्यधिक असहाय भी महसूस करने लगीं ।   अपने परिवार के लिए अब तक किया गया समस्त त्याग, उठाए गए सारे कष्ट एक क्षण में निरर्थक महसूस होने लगे एवं ये स्वयं को ठगा सा महसूस करने लगीं।   ये अपना तमाम समय तो परिवार के लिए वर्षों से अर्पित कर ही रही थीं एवं पुरे समय कठिन मेहनत भी कर रही थीं,  और क्या किया जाए ?  इन्हें समझ नहीं आ रहा था कि परिवार, जिसे इन्होने सदा स्वयं से ऊपर रखा, के स्वास्थ्य एवं इम्यूनिटी को बेहतर करने के लिए ये आखिर करें तो क्या करें?

इस बारे में और जानकारियाँ जुटाने पर पता चला कि इन खतरनाक रसायनों से मुक्त खाद्य पदार्थ बड़े शहरों में ऑर्गेनिक फ़ूड के नाम से बिकते हैं, और वह भी मोटी कीमत पर, जिन्हें मंगवाना लगभग असंभव सा ही था।  इसी दुःख एवं निराशा के भँवर में डूबते उतरते उन्होंने कुछ दिन के आत्मनिरीक्षण के बाद तय किया कि ये  ऑर्गेनिक फ़ूड वे अपने खेत में खुद उगायेंगी और अपने परिवार एवं अन्य परिवारों को भी विषमुक्त शुद्ध  खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराएंगी।  इस एक निर्णय ने उनके जीवन की दिशा ही बदल दी ।  नौकरी करने का विचार सदा के लिए विदा हो गया।  “जिद करो – दुनिया बदलो” के ध्येय वाक्य के साथ उनने एक कठिन लक्ष्य की ओर कदम बढ़ाना प्रारंभ किया।  लॉक डाउन खुलते ही उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र एवं मध्य प्रदेश के अनेक स्थानों पर इस क्षेत्र में सफलतापूर्वक कार्य कर रहे विभिन्न किसानों के यहाँ प्रत्यक्ष रूप से जाकर इस कार्य को देखा एवं समझा।  स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र एवं अन्य सरकारी संस्थानों के विभिन्न अधिकारियों से भी सतत मार्गदर्शन प्राप्त करते हुए आज वे अपने खेतों में अपनी टीम एवं अन्य स्थानीय कृषक साथियों के सहयोग से विशुद्ध प्राकृतिक एवं जहरमुक्त खाद्य उत्पादों की शृंखला को बढ़ाने में दिन रात लगी हैं।  उन्हें संतोष है कि वे आज ना सिर्फ अपने परिवार बल्कि अपने परिचित कुछ अन्य परिवारों को भी शुद्ध प्राकृतिक सब्जियां, मसाले एवं स्वयं के घर पर निर्मित आटे, दाल आदि 75 से अधिक विभिन्न खाद्य उत्पाद उपलब्ध करा रही हैं ।  उनका अगला लक्ष्य जहर मुक्त फल, दूध एवं दुग्ध उत्पादों की उपलब्धता सुनिश्चित करना है ।

अपने विगत 3-4 वर्षों के गहन अध्ययन एवं रिसर्च के आधार पर उन्होंने ऑर्गेनिक फ़ूड की भी कुछ कमियों को चिन्हित किया और उनका निदान करते हुए उन्होंने प्राकृतिक खेती पद्धति को अपनाया है ।  इसी आधार पर उन्होंने अपने फार्म को “डिवाइन नेचुरल फार्म” नाम दिया है।   वे कहती हैं कि उनकी इस प्राकृतिक खेती की जिद एवं जुनून को पूरा करने करने एवं आगे बढ़ाने के लिए उन्हें परिवार के सभी सदस्यों का हर प्रकार का सहयोग सदा मिलता रहता है ।  उनके इस प्रयास ने उनके पूरे परिवार एवं उनसे जुड़े अन्य परिवारों के मन में  भी नयी सकारात्मकता, उमंग एवं उत्साह का संचार किया है।
अख़बार के पाठक उनसे WhatsApp नंबर 87700 50804 पर संपर्क कर सकते हैं ।

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