प्रदेश

मांसाहार को छोड़े, शाकाहार को अपनाये- श्री पारसमुनिजी

महावीर अग्रवाल 
 मंदसौर एक सितम्बर ;  जैन आगमों में एकेन्द्री से लेकर पंचेन्द्री जीवों का भेद बारिकी से बताया गया है। मांसाहार को ग्रहण करना पापकर्म है जो भी मांसाहारी भोजन ग्रहण करते है वे पापकर्म को बढ़ाते ही है। साथ ही अपने स्वभाव में क्रूरता, क्रोध आदि विकारों को भी बड़ाने का काम करते है।
                                 उक्त उद्गार परम पूज्य जैन संत श्री पारसमुनिजी म.सा. ने नवकार भवन शास्त्री कॉलोनी में कहे। आपने शुक्रवार को धर्मसभा में कहा कि एकेन्द्री जीव में मांस नहीं होता है, जैसे गेहूं-चावल आदि पदार्थ को ग्रहण करने में कम दोष लगता है लेकिन पंच इन्द्रीय जीव जैसे पशु पक्षी का मांस अभक्ष पदार्थ माने गये है। मांसाहार में भले ही एक जीव की हिंसा हुई है लेकिन वह हिंसा क्रूरतापूर्वक की गई है इसलिये मांसाहार ग्रहण करने वाले व्यक्ति को भी क्रूरता का ही भाव आयेगा। पंचइन्द्रीय जीव की हिंसा की तुलना एकेन्द्री या द्विइन्द्रीय जीव की हिंसा से नहीं की जा सकती है इसलिये मांसाहार को छोड़े शाकाहार को अपनाये।
                                    लालसा को सीमित करे और सुखी  रहे- संत श्री अभिनंदनमुनिजी ने कहा कि लोभ या लालसा जीवन में  दुःख ही देती है। एक लालसा पुरी होने पर दूसरी जाग जाती है, इसलिये अपनी लालसा को सीमित रखे और सुखी रहने का प्रयास करे। धर्मसभा में बड़ी संख्या में धर्मालुजन उपस्थित थे।

Related Articles

Back to top button