ढाई लाख से अधिक श्रद्धालुओ ने सिंगाजी महाराज की समाधी पर शीष नवाकर गुरु दीक्षिणा में शुद्ध घी चढ़ाया
मयंक शर्मा
खंडवा १७ अक्टूबर ;अभी तक ; आज शरद पूर्णिमा को 10 दिनी सिंगाजी मेले का मुख्य दिवस होने से यहा करीब ढाई लाख से अधिक श्रद्धालुओ ने सिंगाजी महाराज की समाधी पर ं शीष नवाकर गुरु दीक्षिणा में शुद्ध घी चढ़ाया है।
हरसूद जनपद के सीईओ अरविंद पाटीदार ने बताया कि संत सिंगाजी 16 वी शताबदी के निगुर्ण संत थे। वे चरवाहे थें जिसके कारण दर साल जिले के ही नहीं मध्यप्रदेश गुजरात राजस्थान सहित अनेक प्रांतो के दुधारू पशु पालक दूध के बन घी व चिंराजी लेकर प्रसाद रूप में भोग लगाते है और मनोकामना करते है कि साल भर उनके पशु स्वस्थ और दीघायु रहे। उन्होने कहा कि चमत्कार यह होता है कि क्विटलों से शककर चिंरोजी व घी का चढावा के बाद यहां कीडे मकोडे व चिंटी तक फटकती नहीं है। गुुरूवार देर शाम तकं यहां करीब ढाई लाख से अधिक भक्त समाधि पर मथ्था टेक चुके है और आने वालेा का सिलसिला जारी है।
निमाड़ के निर्गुणी संत सिंगाजी महाराज की समाधि स्थल पर दर साल दस दिवसीय मेला शरद पूर्णिमा तक चलता है। पूर्णिमा पर दिन भर यहां निशान चढ़ाने का सिलसिला जारी रहा। दो दिन में ही यहां करीब एक हजार से अधिक निशान चढाए गए। वहीं झाबुआ के महाराजा परिवार का भी मुख्य निशान मंदिर परिसर में पहुंचा। सिंगाजी महाराज की समाधि पर शाम के समय दीप स्तंभ पर दीपों को प्रज्वलित कर महाआरती भी की गई।
मेला स्थल पर सैकडों दुकानों पर खरीदी के लिए भीड़ लगी रही। यहां का पशु मेला प्रख्यात है। हरसूद जनपद द्वारा आयोजित कार्यक्रम में व मेला समापन में मुख्य अतिथि काबीना मंत्री विजय शाह, ने भाग लिया। विधायक नारायण पटेल ने कार्यक्रम की अध्यक्षता कीं। विधायक कंचन तनवे, मौजूद थी।
समाधि मंहत ने बताया कि यहां गुरूवार शाम तक करीब पांच बैरल शुद्ध घी इकट्ठा हुआ हैं। एक बैरल में 200 लीटर घी आता है। यह बाजार से खरीदा गया नहीं, बल्कि भक्तों द्वारा पाले गए दुधारू जानवरों के दूध से बनाया गया घी है। इस दौरान 20 ट्रॉली के लगभग नारियल प्रसादी चढ़ाया गया।
नर्मदा घाटी में जिले में आकार ले गये इंदिरा सागर बांध की डूब में आने से समाधि को परकोट बनाकर सुरक्षित किया गया है। नर्मदा के बेकवाटटर के तट किनारे समाधि तक ं पहुंच के लिये 2 किमी लंबा रास्ता होकर जाना आना होता है। अत रैलिंग किनारे भक्तों ने नारियल फोड़, पूजन कर मां नर्मदा को भी अर्पित किये।
करीब पांच सौ साल से ज्यादा समय से सिंगाजी धाम में झाबुआ के महाराजा के परिवार के यहां से तीन निशान निकलते हैं, जो गुरु पूर्णिमा को चलकर तेरस को संत सिंगाजी गांव पहुंचते हैं। लाल बड़ा वाला निशान संत सिंगाजी का होता है। पीला निशान दल्लुदास महाराज का होता है, जो संत सिंगाजी के नाती हैं। जिनके धागे बांधने से महारानी को पुत्र रत्न की प्राप्ती हुई थी। तीसरा छोटा वाला लाल निशान केवट का है। इसकी नौका नर्मदाजी में राज परिवार को लेकर डूब रही थी। संत सिंगाजी को पुकारने पर संत वहां पहुंचे और नाव को डूबने से बचाया था।