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31 अक्टूबर जन्म दिवस पर विशेष….. *यदि सरदार पटेल नहीं होते तो भारत एक राष्ट्र के स्वरूप में नहीं होता*
*-रमेशचन्द्र चन्द्रे*
मंदसौर ३० अक्टूबर ;अभी तक ; भारत की स्वतंत्रता के बाद सन 1948 का वर्ष, भारत में राजनीतिक दृष्टि से बड़ा हलचल पूर्ण था। अगस्त 1947 में जैसे ही देश को स्वतंत्रता प्राप्त हुई चारों तरफ अशांति का वातारण दिखाई देने लगा। सबसे पहले तो 50- 60 लाख हिंदुओं को, जो पाकिस्तान से भगाए गए थे, उनको सुरक्षा पूर्वक लाने और बसाने की समस्या सामने आई उसी के साथ-साथ अनेक स्थानों पर सांप्रदायिक उपद्रव, मार- काट को भी नियंत्रण करना पड़ा, एक बहुत बड़ी समस्या प्रत्येक रियासत एवं राज्यों की थी जिनको अंग्रेजी सरकार ने स्वतंत्र बना कर राष्ट्रीय सरकार के साथ इच्छा अनुसार व्यवहार करने की छूट दे दी थी अर्थात विभाजन के साथ जो राज्य भारत में रहना चाहे वह भारत में रह सकता है और जो पाकिस्तान के साथ जाना चाहे वह पाकिस्तान में मिल सकता है। इस प्रकार भारत के ऊपर उस समय चारों तरफ से काली घटाएं घिरी हुई थी और इन सबको संभालने का भार, भारत सरकार के गृह मंत्रालय पर था, जिसके मंत्री थे सरदार पटेल।
देसी राज्यों की समस्या वास्तव में बड़ी विकट थी अधिकांश राजे- रजवाड़े अपने को प्राचीन काल के बड़े-बड़े प्रसिद्ध राजा महाराजाओं तथा चक्रवर्ती नरेशों के वंशज समझकर देश का वास्तविक स्वामी स्वयं को ही मानते थे। ऐसे राजाओं का भी अभाव नहीं था जो मन ही मन अंग्रेजों के चले जाने पर तलवार के बल से भारत देश पर अपनी हुकूमत करने का सपना देखते रहते थे। भारत के देशी और विदेशी शत्रु भी समझते थे की यह समस्या भारत की आंतरिक व्यवस्था को इतना अधिक झकझोर देगी कि वह सचमुच लुंज- पुंज हो जाएगा और तब हमको उस पर दांत गढानें का अच्छा मौका मिलेगा और तो और सामान्यतः लोगों की आमतौर से यह धारणा थी कि “इस समय परिस्थिति- वश अंग्रेज भारत को स्वतंत्रता देकर चले गए तो क्या पर वे समझते थे कि पाकिस्तान और देशी राज्यों के कारण कांग्रेस सरकार शासन को चला सकने में समर्थ नहीं होगी और झक मार कर अंत में उन्हीं को अर्थात अंग्रेजों को बुलाकर सुरक्षा करवाना पड़ेगी पर लोगों की यह सब शंका- कुशंका, अटकलें और भ्रम उस समय हवा में उड़ गए जब सरदार पटेल ने चार-पांच महीने के भीतर ही अधिकांश राजाओं को अपनी रियासतें, भारतीय राष्ट्र में शामिल करने के लिए राजी कर लिया। उन्होंने शुरुआत अपने प्रांत गुजरात से की और वहां की कई छोटी-छोटी रियासतों को भारतीय संघ में शामिल करके, इसके पश्चात मध्य भारत, पंजाब और राजस्थान की रियासतों दक्षिण क्षेत्र सहित को संघ बनाकर उनको भारतीय संघ में सम्मिलित कर लिया गया। जूनागढ़, भोपाल, बड़ौदा आदि 340 राज्य राज्यों के शासको को बिना किसी विरोध का भाव प्रकट किये, सरदार ने साम, दाम, दंड, भेद की राजनीति द्वारा बिना किसी प्रकार के बल यह हिंसा का प्रत्यक्ष प्रयोग कर उनकी समस्या को हल कर दिया।
हैदराबाद भारत की सबसे बड़ी रियासत थी और मुसलमान उसे अपना गढ समझते थे, भारत विभाजन के पश्चात वहाँ कितने ही कट्टर पंथी मुस्लिम वहाँ जा पहुंचे और कोशिश करने लगे कि, *हैदराबाद को पाकिस्तान में शामिल किया जाए वहां के निजाम ने सरदार पटेल को यहां तक का संदेश भेज दिया कि यदि हैदराबाद रियासत को भारतीय संघ में मिलाने का प्रयास किया गया तो यहां के डेढ़ करोड़ हिंदुओं की केवल हड्डियां मिलेगी तब सरदार पटेल ने उन्हें यह कठोर संदेश दिया है कि यदि ऐसा एक प्रयास भी आपने किया तो क्या हम चुप बैठे रहेंगे?*
सरदार पटेल ने भारतीय सेना को हैदराबाद के विरुद्ध खड़ा कर दिया जिसके कारण 2 दिन भी निजाम की सेना मुकाबला नहीं कर पाई तथा उन्होंने सरेंडर कर दिया, परिणाम स्वरूप हैदराबाद रियासत भारतीय संघ में सम्मिलित हो गई। यह कुशलता एवं वीरता केवल सरदार पटेल ने हीं दिखाई जहाँ उन्होंने भय का उपयोग भी किया और बिना हिंसा किए हुए हैदराबाद रियासत को भारतीय संघ में मिला लिया।
सरदार पटेल तो गोवा को भी भारत में मिलना चाहते थे किंतु जवाहरलाल नेहरू की अस्वीकृति के कारण गोवा भारत की आजादी के कई वर्षों बाद स्वतंत्र हुआ।
यदि सरदार पटेल नहीं होते तो यह भारत कभी भी एक राष्ट्र का स्वरूप नहीं सकता था, और आज भी सरदार पटेल के भजनों पर चलकर के राम- जन्मभूमि, काशी विश्वनाथ, केदारनाथ, द्वारका, महाकाल लोक, पालीताना, गिरनार, अंबा माता इत्यादि धार्मिक स्थलों का विकास कर भारत की सांस्कृतिक विरासत को पुनः पोषित करने का काम किया जा रहा है और लगातार भारत की एकता को मजबूत बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं जिसमें कश्मीर से धारा 370 हटाना भी अपने आप में एक उपलब्धि है।
गुजरात में भारत की एकात्मता का प्रतीक सरदार पटेल का “स्टैचू ऑफ यूनिटी” जो बनाया गया वह भारत के प्रत्येक गांव-शहर से कृषि एवं घरेलू औजारों में उपयोग किये जाने वाले लोहे को इकट्ठा करके बनाया गया है, यह इस बात का प्रतीक है कि सरदार पटेल आज भी सर्वमान्य है तथा श्रद्धा के प्रतीक हैं। यह भारत उनके उपकारों को कभी भूल नहीं सकता। हम अपने विनम्र श्रद्धा सुमन समर्पित करते हैं।