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माहेश्वरी समाज का उत्पत्ति दिवस ‘महेश नवमी ‘ 29 मई पर विशेष- माहेश्वरी स्वयं को जाने

महावीर अग्रवाल
मंदसौर २८ मई ;अभी तक;  प्रत्येक समाज में कतिपय परम्पराएं-संस्कार होते ही हैं। सभी की अपनी-अपनी वंशावली भी है। उनका अपना इतिहास है। इसी तरह हमारे माहेश्वरी समाज का भी अपना एक गौरवमयी ऐतिहासिक वजूद है, जिसे आज की नई पीढ़ी को समझना-जानना अत्यंत जरूरी है। हालांकि समय-समय पर सामाजिक पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से यह अवगत कराया जाता रहा है कि हमारे समाज का प्रादुर्भाव कैसे हुआ और हम क्या हैं, कैसे है तथा हम ‘माहेश्वरी’ क्यों कहलाते है, फिर भी बदलते परिवेश में यह पुनः स्मरण कराने योग्य है कि आज के युवा जानें कि ‘माहेश्वरी’ आखिर क्या है, कैसे हैं और क्यों हैं। ऐसी ही कुछ जानकारी देने का प्रयास यहां किया गया है।
’’पहचानें अपने आपको क्या हैं हम ’’
                               सर्वप्रथम यह जानना जरूरी है कि माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति कैसे हुई। ऐतिहासिक रूप से जो जानकारी मिलती है उसके अनुसार हमारे वंशज पहले क्षत्रिय राजपूत) थे और फिर वैश्य हो गए, जिसकी एक प्रचलित गाथा भी है। यह एक सामाजिक विचारधारा के परिवर्तन की एक कड़ी कही जा सकती है। समय के साथ हमारे गोत्र (खापों) और नखों में परिवर्तन होता रहा। प्राचीनकाल में हमारी 72 खांपें थीं और प्रत्येक खांप में अनेक नखें समाविष्ट हुई जो आज भी हैं।  हमारी उत्पत्ति के संबंध में जो प्रामाणिक गाथा है, उसके अनुसार हम भगवान महेश की संतान हैं और उन्हीं ने हमें क्षत्रिय से वैश्य बनाया- तलवार छुड़वाकर तराजू थमाया। तभी से हम भगवान महेश के नाम से ’माहेश्वरी’ कहलाए। कहा जाए तो हम भगवान शंकर के अंश ही हैं। इसे सिद्ध करने के लिए जो प्रामाणिक दृष्टांत है वह  इस प्रकार है-
                                    प्राचीनकाल में राजपूताने के ग्राम खंडेला के प्रतापी राजा खडगल सेन ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराया जिसके जरिए उन्हें सुजानकुंवर नामक एक वीर तथा तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति हुई। तब ऋषियों ने राजा को सलाह दी कि वे अपने इस पुत्र को उत्तर दिशा की ओर कदापि न जाने दें। समय के साथ सुजानकुंवर जवान हो गया तो राजा ने उसे अपना राज-काज सौंप भविष्य में कभी उत्तर दिशा की ओर न जाने की समझाइश दी और स्वयं परम्परा के वानप्रस्थ जीवन व्यतीत करने लगे। कहा जाता है कि उस समय जैन धर्म का प्रचार जोरों पर था। यज्ञ में कुछ अज्ञानी, स्वार्थी, वेद-विरोधी लोग हिंसा को स्थान देने लगे थे। अतः यज्ञों का विरोध होने लगा था। इसी के चलते युवराज सुजानकुंवर ने भी जैन धर्म की दीक्षा ली और वह भी यज्ञों का विरोध करने लगे। इसी बीच, अपने पिता की चेतावनी को नजरअंदाज कर वह अपने 72 उमरावों के साथ उत्तर दिशा में शिकार के लिए चल दिए। वहां उन्होंने कुछ ऋषियों को यज्ञ करते देखा तो क्रोधित होकर अपने उमरावों को उनका यज्ञ विध्वंस करने का निर्देश दे दिया। सभी ने मिलकर यज्ञ नष्ट कर दिया जिस पर ऋषियों ने उन्हें शाप दिया कि तुम सब जड़वत् हो जाओ। फलस्वरूप सुजानकुंवर सहित सभी उमराव तत्काल पत्थर में तब्दील हो गए। जब राजा खंडगल सेन को अपने पुत्र के विषय में यह समाचार मिला हो वे शोक विहृल हो गए और उन्होंने अपनी रानियों समेत प्राण त्याग दिए। सुजानकुंवर की पत्नी रानी चंद्रावती बुद्धिमान व विदुषी थी। वह समस्त उमरावों की स्त्रियों को साथ लेकर ऋषियों के पास पहुंची जहां पुनः यज्ञ शुरू कर दिया गया था। उन सभी ने अपने पतियों को शाप से मुक्त करने की प्रार्थना ऋषियों से की। इस से पर ऋषियों ने कहा कि दिया गया शाप तो वापस नहीं हो सकता, लेकिन अगर वे भगवान महेश और माँ पार्वतीजी की आराधना करें तो वे उन्हें जीवन दे देंगे। तब सभी रानियों ने भगवान महेश व पार्वती को अपनी आराधना-तपस्या के बल पर प्रसन्न किया और उनके आशीर्वाद से अपने पतियों को जीवित कराया; साथ ही भगवान ने उन्हें क्षत्रिय धर्म त्यागकर वैश्य धर्म अपनाने को कहा। भगवान महेश की आज्ञानुसार सभी 72 उमरावों ने यज्ञ स्थल के समीप स्थित कुंड में जब स्नान किया तो में उनके सारे शस्त्र गल गए। तभी से यह स्थान लोहार्गल के नाम से प्रसिद्ध हुआ।(यह तीर्थ आज लोहार्गल धाम के नाम से राजस्थान मे प्रसिद्ध तीर्थ है) इस दौरान जब ऋषियों ने भगवान महेश से प्रश्न किया कि हमारे यज्ञ कैसे पूर्ण होंगे? कौन हमारी सहायता करेगा ? भगवान ने कहा कि इन उमरावों में से आप अपने 12-12 यजमान बना लो। ये तुम्हें दान-दक्षिणा देते रहेंगे। सुजानकुंवर की पार्वतीजी की ओर कुदृष्टि होने से उसे कहा गया कि तुम मांग कर खाओगे। इन 72 वैश्य परिवारों की वंशावली तुम्हारे पास रहेगी । इस तरह भगवान महेश से हमारी जाति ‘‘माहेश्वरी’’ का उदय हुआ और उसकी 72 खापें हुईं। आगे जाकर एक-एक खांप की आगे चलकर विविध नखें प्रचलित हो गई। इस प्रकार ज्येष्ठ शुक्ल नवमी को श्री महेश भगवान के आशीर्वाद से माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई। बाद में क्षत्रियों से 5 खापें और हमारे समाज में शामिल हुई।

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