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आचार्य श्री अशोक सागर सूरीश्वरजी म.सा. के 80वें जन्मदिवस पर आलेख:-
महावीर अग्रवाल
मंदसौर २१ अप्रैल ;अभी तक; आज श्री नागेश्वर तीर्थ के मार्गदर्शक, माणिभद्र तीर्थ उज्जैन उद्धारक, श्री आर्यरक्षितसूरिश्वरजी तीर्थ धाम मंदसौर के प्रेरक, श्री माण्डवगढ़ तीर्थ जीर्णोद्धारक एवं बहुत से तीर्थ और उपाश्रय के प्रेरक *प.पू. आचार्य श्री अशोकसागरसूरिश्वरजी म.सा.* का 80वां जन्मदिवस है। आज इस दिवस के उनके शिष्यगण अनुकम्पा दिवस के रूप में मना रहे है। आज उनके जन्मदिवस पर जीवदया व अनुकम्पा के विविध कार्यक्रम कर उनके दिर्घकालीन जीवन की कामना उनके धर्मानूजन द्वारा की जायेगी।
उनका जन्म गुजरात बड़ोदा के छाणी गांव में विक्रम संवत 2000 वैशाख सुदी बीज (सन् 1944) को सेठ शांतिलालजी व श्रीमती मंगुबेन के घर हुआ। उनका नाम अरूण कुमार रखा गया। बचपन से ही अरूण कुमार का धर्म के प्रति लगाव होने से जैन धार्मिक पाठशाला में लगातार पांच वर्ष अध्ययन किया। अध्ययन के दौरान ही सांसारिक भौतिक सुखों के प्रति अनासक्ति के कारण उन्होंने प.पू. विद्वान संत पं. श्री अभयसागर सूरिश्वरजी म.सा. के सानिध्य में जैन भगवती दीक्षा अंगीकार की। दीक्षा के मौके पर उनका नाम मुनिश्री अशोकसागरजी म.सा. रखा गया।
दीक्षा के उपरांत उन्होंने जैन आगमों (शास्त्रों) का अध्ययन किया। उन्होंने जैन धर्म का ज्ञान प्राप्त करने के बाद धारा प्रवाह एवं जोशीली वाणी में धर्मसभाओं में व्याख्यान देने प्रारंभ किये। उनके प्रवचनों की शैली व प्रभाव के कारण उनकी ख्याति बढ़ी तथा वे अल्पायु में ही प्रभावक प्रवचनकार बन गये। उनके द्वारा कई जैन तीर्थों के जिणोद्बार का कार्य किया गया। उनकी प्रेरणा पाकर धर्मालुजनों ने कई जैन तीर्थों के पुनः निर्माण का बिढा उठाया। उनकी प्रेरणा से उज्जैन के माणिभद्र तीर्थ, रतलाम के बिबरोद तीर्थ, मंदसौर के आर्यरक्षित सूरी धाम तीर्थ का कार्य शुरू हुआ। उनकी प्रेरणा से विश्वविख्यात श्री नागेश्वर तीर्थ, माण्डवगढ़ तीर्थ, पालिताना श्री जम्बुदीप तीर्थ में 108 फिट ऊँची भगवान आदिनाथ की प्रतिमा बनाने का कार्य शुरू हुआ। उनकी प्रेरणा से कई छोटे बड़े जिनालयों, उपाश्रयों के कार्य शुरू हुए। कई जैन तीर्थों के प्रेरणादाता एवं प्रतिष्ठाकर्ता के रूप में उन्होंने जैन धर्म की जो सेवा की है वह अद्भूत है।
आचार्य श्री अशोकसागरसूरिश्वरजी म.सा. की प्रेरणा से आपके परिवार के 6 अन्य व्यक्तियों ने भी संयम का मार्ग अंगीकार करते हुए जैन भगवती दिक्षा ग्रहण की। आपने भारतीय धर्म व संस्कृति के सुदृढ़ीकरण के लिये वैष्णव संतों के साथ कई बार धर्मसभाओं में व्याख्यान दिये। गुजरात के महुआ में मोरारी बापू के सर्वधर्म सम्मेलन में उन्होंने जैन आचार्य के रूप में सहभागिता की तथा अपनी ओजस्वी वाणी से सभी को जैन धर्म का ज्ञान प्रदान किया। आपने जिन शासन की अनेक प्रकार से प्रभावना करते हुए अपना पूरा जीवन समर्पित किया है। एवं अनेक कठोर तप तपस्या करके जिन शासन को गौरवान्वित किया है। आज ऐसे विरले व्यक्तित्व के जन्मदिवस पर हम सभी धर्मानुजन उनके दीर्घकालीन जीवन की कामना करते है।
आलेख- धैर्यचंद्र सागर म.सा. व मुकेश खमेसरा