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*चारित्रिक पवित्रता और सैद्धांतिक दृढ़ता अटल जी से सीखना चाहिए*- रमेशचन्द्र चन्द्रे   

महावीर अग्रवाल
 मंदसौर २५ दिसंबर ;अभी तक;  राष्ट्राय स्वाहा इदम् राष्ट्राय, इदं न मम* इस मूल मंत्र के साथ श्री अटल बिहारी वाजपेई के जीवन की शुरुआत हुई। सामान्य परिवार में जन्म और युवावस्था में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में पूर्णकालिक जीवन राष्ट्र को समर्पित कर दिया।
           सार्वजनिक जीवन में रह कर, उन्होंने अपने आप को शुद्ध और बुद्ध रखा। आर्थिक और चारित्रिक एक भी दाग उनकी जिंदगी पर उनके अपने और विपक्षी भी नहीं लगा पाए!
             *आज जो लोग राजनीति में काम करते हैं उनके राजनीतिक जीवन के प्रारंभ में ही उनमें कई प्रकार के व्यावहारिक दोष उत्पन्न होने लगते हैं* *छोटा सा पार्षद या पंच सरपंच बनते ही उसके मुंह में लार टपकने लग जाती है और वह येन केन प्रकारेण आर्थिक लाभ की जुगाड़ में पतित होने लगता है* और धीरे-धीरे उसका चारित्रिक पतन भी प्रारंभ हो जाता है। अगर इस पर नियंत्रण रख सकते हैं तो वास्तविक रुप से हम अटल जी के अनुयायी  माने जाएंगे!
           अन्यथा किसी ने लिखा है कि-
*महापुरुषों के पद चिन्ह अभी मिटे नहीं है*
 *क्योंकि हम उन पर चले नहीं हैं*
            इसलिए अटल जी के चित्र पर माला पहनाते वक्त और अपने भाषणों में अटल जी का गुणगान करते समय उनके निर्मल स्वभाव निश्चल हंसी तथा समाज के प्रत्येक व्यक्ति से प्रेम और उसकी चिंता एवं सैद्धांतिक दृढ़ता ईमानदारी तथा किसी भी प्रकार का पक्षपात किए बगैर देश की सेवा करने का संकल्प लेना चाहिए एवं इस *राष्ट्र तथा समाज की संपूर्ण संपत्ति यह राष्ट्र की है उस में किंचित मात्र भी मेरा अधिकार नहीं है* इस भावना के साथ यदि अटल जी को याद रखा जाता है, तो मैं 100% गारंटी के साथ उन राजनीतिक कार्यकर्ताओं को यह विश्वास दिलाता हूं कि, उनका राजनीतिक जीवन तथा संगठन को *यह भारतीय समाज हमेशा सिर आंखों पर बिठा कर रखेगा और तब ही अटल जी के पीछे अनेक अटल बिहारी, इस भारतवर्ष में तैयार होंगे*
           मेरी ओर से उस महान आत्मा को श्रद्धा सुमन समर्पित करता हूं!

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