ज्ञान आत्मा को परमात्मा से मिलाता है वह सुख शांति और समृद्धि का मार्ग है-पं सचिन शास्त्री 

दीपक शर्मा
पन्ना २२ अप्रैल ;अभी तक;  श्री सर्वेश्वर नाथ धाम से आये पूज्य जगद्गुरु वेदांती जी महाराज के प्रिय शिष्य कथा व्यास सचिन शास्त्री जी ने श्री मद भागवत कथा सुनाते हुए प्रथम दिवस कहा कि जीवन के अनेक दु;खों और समस्याओं का कारण मन का अज्ञान ही है।आत्म-जागरण अथवा ज्ञान प्राप्ति के बाद मन का द्वैत विलीन हो जाता है व आनन्द, शान्ति तथा समाधान जैसी दिव्यताएँ प्रकट होने लगती है ! अतः ज्ञानार्जन का प्रयास !
                            उन्होंने कथा का श्रीगणेश करते हुए कहा कि आत्म-जागरण की दिशा में अखण्ड-प्रचण्ड पुरुषार्थ, बाह्यंतर शुचिता और संकल्प की शुभता ही श्रेष्ठ साधन हैं। वस्तुतः मनुष्य मन में प्रस्फुटित विचार ही कालान्तर में व्यवहार और संस्कारों के रूप में परिणित होते हैं। अतः मनोगत विचारों के प्रति सचेत रहें। विचार आध्यात्मिक-भगवदीय भाव युक्त हों। श्री शास्त्री ने बताया कि श्रेष्ठ विचार ही जीवन उन्नयन-उत्कर्ष के आरम्भिक आधार हैं। वैचारिक शुचिता-पावित्र्य सहेज कर रखना ही साधना का सार है। मनुष्य का जीवन उसके विचारों का प्रतिबिम्ब है। सफलता-असफलता, उन्नति-अवनति, तुच्छता-महानता, सुख-दुःख, शान्ति-अशान्ति आदि सभी पहलू मनुष्य के विचारों पर निर्भर करते हैं। किसी भी व्यक्ति के विचार जानकर उसके जीवन का स्वरूप सहज ही प्राप्त किया जा सकता है। मनुष्य को कायर-वीर, स्वस्थ-अस्वस्थ, प्रसन्न-अप्रसन्न कुछ भी बनाने में उसके विचारों का महत्त्वपूर्ण हाथ होता है। तात्पर्य यह है कि अपने विचारों के अनुरूप ही मनुष्य का जीवन बनता-बिगड़ता है। जहाँ अच्छे विचार उसे उन्नत बनायेंगे, वहीं हीन विचार मनुष्य को गिराएँगे। स्वामी रामतीर्थ ने कहा है – “मनुष्य के जैसे विचार होते हैं वैसा ही उसका जीवन बनता है”। स्वामी विवेकानन्द ने कहा था – “स्वर्ग और नरक कहीं अन्यत्र नहीं, इनका निवास हमारे विचारों में ही है”।इसके पूर्व जगद्गुरु वेदांती जी महाराज के प्रिय शिष्य कथा व्यास सचिन शास्त्री जी की अगुवानी के लिए बुधरौड के अलावा आसपास के क्षेत्र के सैकड़ों श्रद्धालु पहुचे जिन्होंने श्री मद भागवत को श्रद्धापूर्वक रखकर गुरुदेव के सानिध्य में कथा स्थल पहुचे ओर कथा का श्रवण किया।