पेड़ों के महत्व को जाने ( विश्व पृथ्वी दिवस विशेष)

प्रो. खुशबू मंडावरा
सहायक प्राध्यापक, रसायन
राजीव गांधी शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय , मंदसौर
मन्दसौर २२ अप्रैल ;अभी तक;  विश्व पृथ्वी दिवस पर्यावरण संरक्षण हेतु प्रत्येक वर्ष 22 अप्रैल को 192 से अधिक देशों में मनाया जाता है।
इसकी स्थापना अमेरिका के जेराल्ड नेल्सन ने 1970 में एक पर्यावरण शिक्षा के रूप में की थी। प्रत्येक वर्ष पृथ्वी दिवस किसी एक थीम पर आधारित होता है और  लोगों को पर्यावरण सुरक्षा के लिए प्रेरित करता है। 2023 वर्ष की थीम “इन्वेस्ट इन अवर प्लेनेट” अर्थात “पृथ्वी ग्रह में निवेश” है।
                               कोरोना जैसी महामारी के दौर में जो सबसे अधिक महत्वपूर्ण पाया गया वह है ऑक्सीजन जो हमारी जीवन रेखा है। कोरोना से ग्रसित व्यक्ति का ऑक्सीजन स्तर कम हो जाता है और वो आज मरने की कगार पर खड़ा है। इस विकटकाल में समय रहते ऑक्सीजन ना मिल पाना ही मृत्यु का कारण बन गया था। श्वसन प्रक्रिया में हमे ऑक्सीजन वृक्षों द्वारा प्राप्त होती है। हमारे द्वारा छोड़ी गई कार्बन डाइऑक्साइड को पेड़ पौधे अवशोषित कर हमें ऑक्सीजन प्रदान करते है। यह कार्य प्रकाश संष्लेषण प्रक्रिया  द्वारा होता है जिसमे  पेड़ की पत्तियों में उपस्तिथ क्लोरोफिल नामक  पिगमेंट हमारे द्वारा छोड़ी गयी कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल की मदद से सूर्य की ऊर्जा का उपयोग करके शर्करा का निर्माण करती है तथा ऑक्सीजन गैस उत्पन्न करता है जिससे हम श्वसन प्रक्रिया कर पाते हैं। इस तरह पेड़ अपना खाना स्वयं बनाता है जो शर्करा के रूप में बनता है। आर्बर डे फाउंडेशन के अनुसार एक अकेला पेड़ कार्बन डाइऑक्साइड को 48 पाउंड प्रतिघंटा की दर से अवशोषित कर सकता है जो 2 मनुष्यों का समर्थन करने के लिए वातावरण में पर्याप्त ऑक्सिजन वापस छोड़ता है। औसतन एक पेड़ प्रत्येक वर्ष लगभग 260 पाउंड ऑक्सीजन का उत्पादन करता है । दो परिपक्व पेड़ चार लोगों के परिवार के लिए  पर्याप्त ऑक्सीजन प्रदान कर सकतें है।  अब जरा सोचिए की पेड़ हमारे लिए कितने उपयोगी है, लेकिन अफ़सोस मनुष्य ने पेड़ पौधों को केवल उपभोग की वस्तु समझा उसका लालच सिर्फ फल -फूलों, लकड़ी, कोयला आदि से मुनाफा कमाने तक ही सीमित रहा। अल्पावधि मुनाफा कमाने की लालसा मे वह दीर्घावधि मुनाफे से वंचित हो गया है।
मनुष्य ने अपने घरों में कोई खाली कोना नहीं छोड़ा जहाँ पेड़ लगाया जा सके और कम ही लोग अपने घरों में बगीचे के लिए खाली जगह छोड़ते है। मनुष्य अपना अपराधी स्वयं बन गया है। प्रसिद्ध वैज्ञानिक एल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा है “देयर इज़ नो वैक्सीन अगेंस्ट स्टुपिडिटी” मतलब मूर्खता के लिए कोई दवा नहीं बनी है। कोरोना संक्रमण की वैक्सीन तो बन गयी और आने वाले समय मे अधिक कारगर वैक्सीन भी बन जाएगी परन्तु मनुष्य की मूर्खता नामक बीमारी की कोई वैक्सीन नहीं है।
अभी भी वक्त है यदि मनुष्य अपनी बुद्धि का प्रयोग करे और वृक्षों के महत्व को समझे तो संकट से बचा जा सकता है।
नीम, बरगद, पीपल जैसे कुछ वृक्ष है जो 24 घंटे ऑक्सीजन देते है पर हर कोई इतना भाग्यशाली नहीं जिसे इन पेड़ों की छाँव और शुद्ध वायु मिल सके, विशेष रूप से शहरों में। जब घर मे पेड़ लगाने के लिए जगह नहीं ऐसे में हम क्या करे। इसका एक उपाय ये हो सकता है कि हम कुछ पौधे जो गमले में आसानी से  लग सकते हैं, उन्हें लगाए। इसमें हम ऐसे पौधों का चयन करें जो वातावरण में अधिक ऑक्सीजन देते हैं जैसे ऐरेका पाम, स्नेक प्लांट,  मनी प्लांट, ऐलोवेरा( ग्वार पाठा) , तुलसी, जरबेरा, बांस, पोथोस ,स्पाइडर प्लांट आदि इन सभी पौधों को ज्यादा रखरखाव की आवश्यकता नहीं होती और कम पानी की मात्रा में भी ये पौधे अच्छे चलते हैं। तुलसी और जरबेरा को छोड़ कर सभी इंडोर प्लांट है और आसानी से घर के अंदर रखे जा सकते है। मनी प्लांट तो पानी मे भी लगाया जा सकता है । यह एन्टीरेडियेटर का काम भी करता है अर्थात घर के अंदर इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जैसे कंप्यूटर, टीवी, मोबाइल फ़ोन्स, लबटोप्स आदि से उत्पन्न हानिकारक रेडिएशन को अवशोषित कर कम कर देता है।  इसके अतिरिक्त ये सभी पौधे हानिकारक रासायनिक यौगिक  जो वायु प्रदूषक का कार्य  करते है जैसे बेंजीन, टॉलीन, जाइलिन, फॉर्मलडीहाईड, पोलीसाइक्लिक एरोमेटिक यौगिक आदि को वातावरण से अवशोषित कर कम कर देती है। ये प्रदूषक सामान्यतः जीवाश्म ईंधन में स्वाभाविक रूप से होते हैं और प्राकृतिक प्रक्रियाओं और मानव गतिविधियों से वायुमंडल में प्रवेश करते है जिसमे कार्बनिक पदार्थ जैसे लकड़ी, कोयला, पेट्रोलियम उत्पाद होते हैं। तंबाकू के धुएं में बेंज़ीन और टॉलीन होता है जो कैंसर का कारण भी बन सकता है। राष्ट्रीय पर्यवारण संरक्षण इन वायु प्रदूषकों की वार्षिक औसत पर एक निगरानी जांच स्तर निर्धारित करता है जिससे अधिक मात्रा में इन प्रदूषकों का उत्पादन होना अत्याधिक हानिकारक है। यह प्रदूषक गैर दहन गतिविधियाँ जहाँ सॉल्वैंट्स का उपयोग किया जाता है, जैसे सफाई और पेंट्स के निर्माण उद्योग से भी वातावरण में प्रवेश करते हैं।अतः इन्हें वातावरण में कम करने के लिए भी यह पेड़ पौधे उपयोगी है।
 पीपल फार्म जो कि हिमाचल में एक आर्गेनिक फार्म है,ये एक ऐसी संस्था है, जो चोट लगे पशुओं का इलाज करती है और फिर उन्हें उनके स्थान पर छोड़ देती है कुछ अच्छे हृदय के लोग इन स्ट्रे पशुओं को अडॉप्ट भी कर लेते है।
पीपल फार्म को हाल ही में मेनका गाँधी ( राजनेत्री एवं पशु अधिकारवादी) ने अपने इंटरव्यू में कहा था कि जो छोटे छोटे बीज कई बार हमारे घरों के बगीचों में पौधे का आकार ले लेते है उन्हें उखाड़ कर फैंके नहीं बल्कि किसी गमले में लगा दे जब ये थोड़े बड़े हो जाएं तब इनका किसी रिक्त मैदान या घरों के आगे रोपित कर दें। कुछ वर्ष में वो वृक्ष बन जाएँगे। ये काम हम हमारे घरों में मौजुद प्लास्टिक के व्यर्थ डब्बे , बॉटल्स, पोली बैग्स में आसानी से कर सकते हैं।
यदि हम इतना भी नहीं कर सकते तो इन्हें किसी ऐसी संस्था को डोनेट करें जो पौधरोपण करती है। पिछले साल वन विभाग  मंदसौर ने मात्र 10 रुपये में 5 पौधे बांटे थे जो  एक बहुत अच्छी पहल थी। पौधा लगाने के बाद उसकी देख रेख भी करें हो सके तो ट्री गॉर्ड का इंतज़ाम करे और पानी समय समय पर पिलायें।
सरकार को सभी संस्थाओं में सप्ताह में एक दिन “नो व्हीकल डे” बनाना चाहिए जिसमें कोई अपने कार्यालय में व्हीकल से ना आये। ऐसा करने से वातावण में कार्बन इमिशन का  प्रतिशत कम होगा जिससे ग्लोबल वार्मिंग कुछ हद तक कम होगी। पेड़ तापमान को भी नियंत्रित करते हैं।  अभी भी समय है ,इससे पहले की बहुत देर हो जाये। हमे अपना हनुमान स्वयं बनना होगा और हमारी संजीवनी भी खुद तैयार करनी होगी।