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दूसरों को छोटी बातों को इग्नोर करें और जीवन में खुश रहे-आचार्य श्री विजयराजजी

महावीर अग्रवाल
मन्दसौर २७ मार्च ;अभी तक;  जीवन में हमें यदि प्रसन्न (खुश) रहना है तो छोटी-छोटी बातों पर ज्यादा चिंतन मनन नहीं करना चाहिए। यदि हम ऐसा करते है तो जीवन की खुशियों पर विपरित प्रभाव पड़ता ही है। जिस प्रकार सामान का बोझ लेकर हम ज्यादा दूर तक नहीं चल पाते है।उसी प्रकार मन से दूसरों की छोटी छोटी बातें भी बोझ के समान ही हैै, हमे ऐसी बातों को इग्नोर करना चाहिये।
                                      उक्त उद्गार जैन आचार्य श्री विजयराजजी म.सा.ने बुधवार को हर्ष विलास पैलेस अभिनंदन क्षेत्र में आयोजित धर्मसभा में कहे। आपने यहां विशाल धर्मसभा में कहा कि किसी के कहने से कुछ भी प्रभाव पड़ता नहीं है। ऐसे में कोई आपको कुछ शब्द कह दे तो उसे अपने मन में नहीं रखना चाहिए। ऐसे शब्द हमें हमेशा दुख ही देते है जीवन में प्रसन्नता चाहते हो तो जीवन में संकल्प करें कि छोटी मोटी बातों को अपने मन में स्थायी रूप से नहीं रखेंगे।
                                आचार्य श्री विजयराजजी म.सा. ने कहा कि यदि हम दूसरे की बातों को मन में परमानेंट रूप से रख देंगे तो हम एक प्रकार के मनोरोगी भी बन सकते है जो सदैव दूसरों की बातों पर चिंतन करता रहें दुनिया का स्वभाव विचित्र है, यहां ऐसे लोगों की कोई कद्र नहीं होती है जो ऐसा हो। आपने कहा कि जिस प्रकार हम प्रतिदिन कचरे को फेकते है कचरे को हम घर पर नहीं रखते है उसी प्रकार दूसरे की बाते जो कचरे के समान अनुपयोगी है उन्हें हम क्यों मन में रखे। जिस प्रकार कचरे को घर में ज्यादा दिन रखते है तो उसमें दुर्गंध आने लगती है उसी प्रकार दूसरे की कही हुई अनुपयोगी बाते हमारी दुख का कारण बनती है हमें प्रसन्न नहीं रहने देती है। आचार्य श्री ने कहा कि जीवन में समय एक जैसा नहीं रहता कभी अनुकुलता है तो कभी प्रतिकुलता है कभी दुख है तो खुशी है कभी हानि है तो कभी लाभ है इसलिये जीवन की प्रत्येक परिस्थिति में खुश रहने की कोशिश करो।
                                   उपाध्याय श्री जितेशमुनिजी ने कहा कि मनुष्य अपने जीवन में सदैव भागदौड़ करता रहता है उसे पहुचना कहा है उसे नहीं पता है। जीवन में हम कितनी ही भागदौड़ कर ले लेकिन आत्म सुख को प्राप्त कर रहे है कि नहीं विचार करें। जीवन में भागदौड़ करने पर भी जाना तो शमशान में ही है। हम दौड़ते है सांसारिक सुखों के पीछे लेकिन यह सुख अस्थायी है। जब तक हमारे मन में आत्मसुख की कामना नहीं आयेगी हमारा कल्याण होने वाला नहीं है। ज्ञानीजन कहते है कि यह संसार विश्वास लायक नहीं है। काल निर्दयी है जब यह काल आपके जीवन में आएगा तो सांसारिक रिश्ते नाते यही रह जायेंगे। काल को रोक सके इतना शरीर आपका शक्तिशाली नहीं है। शरीर कितना निर्बल है यह कोरोना काल में सिद्ध हो चुका है। आपने कहा कि छोड़ों मनमानी, सुनो जिनवाणी तभी सुधरेगी आपकी जिंदगानी। जीवन में सब रिश्ते नाते झुठे है। जिनवाणी पर भरोसा रखे यही तुम्हें आत्मसुख की ओर समाधि की ओर प्रवृत्त करेगी। धर्मसभा में बड़ी संख्या में धर्मालुजन उपस्थित थे।

 

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