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पश्चिमी बंगाल विधानसभा चुनाव के बाद कर्नाटक के चुनाव में बीजेपी ने क्या सत्ता के घमंड में कोई सबक नही लिया 

 ( महावीर अग्रवाल )
मन्दसौर २५ मई ;अभी तक;  पश्चिमी बंगाल के विधानसभा चुनाव के बाद लगता था कि कर्नाटक विधानसभा के 2023 के विधानसभा चुनाव में देश की सबसे बड़ी सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी सबक ले चुनावी समर में उतरेगी लेकिन यह घमंड कहो या सत्ता के घमंड में उसका चुनाव प्रचार का वह दृश्य कर्नाटक और साथ ही साथ देश के लोगो के सामने नही आया , जिसकी अपेक्षा की जा रही थी।पश्चिमी बंगाल में तो अकेले ममता बनर्जी ने व्हील चेयर से चलकर चुनाव प्रचार की बागडोर सभाली और मतदाताओं ने उनकी झोली भर दीऔर कांग्रेस को तो पूरी तरह सबक सिखा दिया। हालांकि इसी कांग्रेस ने कर्नाटक के चुनाव प्रचार में पश्चिमी बंगाल के चुनाव प्रचार को पीछे छोड़ दिया। लेकिन कर्नाटक के मतदाताओं ने  बीजेपी के घमंड को दिन ने तारे दिखा दिये।
                          कर्नाटक विधानसभा के चुनाव प्रचार में जो बीजेपी भ्रष्टाचार मुक्त शासन की बात कहती है उसी पर कांग्रेस ने 40 प्रतिशत कमीशनखोरी का गभीर आरोप लगाया जिसका बीजेपी के नेता पूरा चुनाव निपट गया पर जवाब नही दे पाए और अब मध्यप्रदेश विधान सभा के चुनाव सन्निकट है उसके पूर्व पूर्व मुख्यमंत्री श्री दिग्विजयसिंह ने  बीजेपी सरकार पर हर कार्य के भ्रष्टाचार का मीनू कार्ड बना हुआ है जैसा गभीर आरोप लगाए। बात कमर तोड़ महंगाई की तो है लेकिन एक और इस शासन की यह बात चर्चा में है कि दो दशकों में ऐसा क्या हुआ कि क्या रेत का अकाल पड़ गया या वास्तव में महंगाई का आतंक जो रेत की एक ट्राली 500-700रु में मिल जाती वो 7 हजार रु में भी नही मिल रही है। क्या इसे ही सुशास न कहते है।पश्चिमी बंगाल और कर्नाटक के विधानसभा चुनाव से भाजपा ने क्या सबक सीखा है इसका पता तो अब मध्य प्रदेश, राजस्थान व छत्तीसगढ़ के होने वाले विधानसभा चुनाव से पता चल सकेगा ।
                                   यह बात बहुत स्पष्ट है कि अब भले ही भाजपा मतदाताओं को खुश करने के लिए दिए जा रहे हैं लाली पाप को रेवड़ी बांटने की संज्ञा दे लेकिन दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने जिसका देश की राजनीति में कोई वजूद ही नहीं था उसने बिजली माफ और पानी पर्याप्त बिल आधा का नारा दिया और जीत लिया दिल्ली की जनता के दिलों को यही हाल रहा अभी हाल ही हुए पंजाब विधानसभा के चुनाव के। पंजाब में कांग्रेस भाजपा तो अभी तक चुनाव लड़ती आ रही थी लेकिन आम आदमी पार्टी तो पहली बार चुनाव मैदान में उतरी और वहीं बिजली माफ जैसे नारे नारे दिए गए और पंजाब की सत्ता पर काबिज हो गए। अब इसे आप रेवड़ी कहेंगे या कहेंगे तो कहते रहिए कि इससे क्या फर्क पड़ता है।
                                   पश्चिमी बंगाल विधानसभा के चुनाव के पूर्व भाजपा ने वहां की कमान काफी वर्ष पूर्व महामंत्री श्री कैलाश विजयवर्गीय को दी थी चुनाव के समय भाजपा ने अपनी सारी ताकत वहां झोंक दी लेकिन दूसरी तरफ एक अकेली ममता बनर्जी ने व्हीलचेयर पर प्रचार की बागडोर संभाली और सफलता हासिल की और यह सबक आखिर भाजपा ने कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में नहीं लिया। कांग्रेस के स्थानीय नेताओं के अलावा राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे ही तो प्रमुख थे चुनाव प्रचार में लेकिन भाजपा का वही दृश्य पश्चिम बंगाल वाला और वह भी मतदाताओं के सम्मुख खाली हाथ जबकि कांग्रेस ने मुक्त हाथ से सत्ता सुख मिलने पर लाभ पहुंचाने की 5 घोषणाएं कर दी और मतदाताओं ने उन्हें सत्ता सुख का आशीर्वाद दे दिया।
                                    कर्नाटक में राहुल गांधी ने अपने चुनाव प्रचार के आखिरी दिनों में वहां की भाजपा सरकार पर 40% कमीशन खोरी के गंभीर आरोप लगाए जबकि भाजपा तो भ्रष्टाचार मुक्त शासन का वादा करती है ।यही स्थिति क्या मध्यप्रदेश में है जबकि इस पूरे 5 वर्ष के सत्ता सुख में मध्य प्रदेश में भाजपा की चर्चा जरा कोई विश्लेषक सुने तो सही ।एक आरोप कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री श्री दिग्विजयसिंह ने यह भी खुलकर मध्य प्रदेश सरकार पर लगाया कि ईस प्रदेश में हर कार्य के भ्रष्टाचार का मीनू कार्ड बना हुआ है। इसका खंडन भी नहीं आया। चुनाव तक क्या कलाई खुलती है और उसका क्या असर रहता है यह देखना है।
                                       2018 के मध्य प्रदेश सहित 2 राज्यों के विधानसभाओं के हुए चुनाव में कांग्रेस ने लॉलीपॉप फेंका था ₹50000 तक के किसानों के कर्जे माफ और तीनों राज्यों में कांग्रेस को सत्ता की कुर्सी पर मतदाताओं ने बिठा दिया ।मतदाताओं को राजनीतिक दल के साथ शासन देंगे और सत्ता की कुर्सी पर बैठने के बाद क्या लाभ पहुंचाएंगे यह चुनाव प्रचार के दौरान घोषणाओं और घोषणा पत्र में घोषणा किसमें कितना है दम यह मतदाता देख उसे कुर्सी पर बिठा देता है ।यह रेवड़ी कोई नई नहीं है कि देश में सुई से लेकर ट्रैक्टर तक के कर्ज माफ का समय भी लोग चुनाव में देख चुके हैं जब थोक में सत्ता के लिए कुर्सी मिली थी। अब वह बात अलग है कि बाबरी ढांचे का मसला खड़ा हुआ था और भाजपा की सरकार चली गई थी ।ऐसा ही कुछ अभी मध्य प्रदेश व कर्नाटक में कांग्रेस में बगावत के सुर मजबूत हुए और रेवड़ी बांटने की घोषणाओं से सत्ता में आई सरकार फिर अनजाने में चुनाव तक के लिए चली गई।
                                       चुनाव के समय आप पार्टी ने दिल्ली व उसके बाद पंजाब में बिजली के बिल माफ वाला नारा दिया यह इन विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं की बड़ी समस्या थी और कोई राजनीतिक दल समझने को तैयार नहीं था जबकि आप पार्टी को भाजपा ,कांग्रेस ने मौका दिया और फिर कोई ताकत वह वापस बटोर नहीं पा रहे हैं ।दिल्ली में हाल ही में नगर निगम के चुनाव में भी भाजपा ने लाख जोर लगाया लेकिन फिर भी उसे मतदाताओं ने सत्ता नहीं सौंपी जब दिल्ली पर भाजपा और कांग्रेस दोनों को सत्ता सुख मिला था तब दिल्ली की जनता की बड़ी समस्या तो ठीक छोटी-छोटी समस्याओं को हल करने की दिशा में कदम नहीं उठाया जिसका वह चुनाव में बखान कर सके दिल्ली में सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं व सरकारी स्कूलों की शिक्षा का स्तर भी सरकार ने बढ़ाया। अपनी स्थिति मजबूत की और अब वह पंजाब में भी अपनी स्थिति मजबूत कर लेती है तो कोई आश्चर्य नहीं होगा लेकिन भाजपा कांग्रेस के लिए तो यह सबक होगा ही।
अब यहां प्रश्न आता है जिसे भाजपा रेवड़ी बांटने वाला लॉलीपॉप की संज्ञा देती है ।क्या यह सत्ता में बैठने वालों के लिए बेहतर निर्णयों के सामने बोने होंगे लेकिन ऐसा नहीं है देश के मतदाता लोकतंत्र में नेताओं के चकाचौंध के हालात, उनकी खुशहाल जिंदगी, सत्ता सुख में उनकी दिन दूनी रात चौगुनी प्रगति हो नेता के पद पर रहने के बाद पेंशन का सुख यह सब क्या मतदाता देख आकलन नहीं कर रहा है ।देखो ना नेता को पद मिलते ही उसकी चाल चेहरे को देख मतदाता कितना खुश होता होगा। हां यही हालात देख यदि आम मतदाता भी उनके द्वारा शासन सोपे जाने वाले राजनीतिक दल से मतदाता करता है तो क्या गलत है और इसमें भी प्रत्येक मतदाता के घर को बिजली बिल माफ या 200 यूनिट बिजली माफ जैसी सुविधा मिलती है तो क्या यह अपेक्षा भी मतदाता कि गलत है। मध्यप्रदेश में तो सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर और सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं चरमरा रही है लोग महंगी शिक्षा और महंगी चिकित्सा से बहुत परेशान है लेकिन शासन में बैठे नेता के माथे पर सल तक नहीं है। दूसरी ओर वह नेता की ओर जब निहारता है तो 5 वर्ष का कार्यकाल यदि 7 पीढ़ी की काया पलट देता है यह दृश्य वह देखता है तो मन ही मन वह क्या विचार व्यक्त करता होगा इसका आकलन चुनाव में ही हो सकता है कहा जाएगा ।क्या सत्तारूढ़ दल के शीर्ष नेता ध्यान देते हैं।
अभी 21वीं सदी में वर्ष 2023 में ही देश के हालात देखो तो पता चलता है कि महंगाई की आग में कौन सा सामान नहीं झुलसा है ।बाजार में किस चीज के दाम नहीं बढ़े हैं और वह भी लोगों की क्रय क्षमता से बाहर। पेट्रोल-डीजल ने तो सौ का आंकड़ा पार करने के बाद मानो ऐसा हो गया है कि अब इससे भाव ऊपर ही जाना है नीचे नहीं आना है ।गैस सिलेंडर के दाम ने हर घर को प्रभावित किया है। बाजार में महंगाई की मार से कौन प्रभावित नहीं है ।यह जरा सर्वे करके सत्तारूढ़ राजनीतिक दल के नेता देख ले तो ज्यादा अच्छा होगा ।बिजली में नागरिकों को लाभ दिया तो क्या बिजली कंपनियां इतनी घाटे में चली गई कि वह बंद हो गई बल्कि इनमें होने वाले भ्रष्टाचार ही उजागर हुआ है। अब मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ ,राजस्थान विधानसभाओं के चुनाव निकट भविष्य में है और यह देख भाजपा कांग्रेसी अभी से मतदाताओं को लाली पाप का ताना-बाना बुनना प्रारंभ कर दिया है कोई ₹1000 देने की बात कर रहा है तो दूसरा पंद्रह सो ₹ देने की बात कर रहा है ।अभी तो चुनाव तक और क्या मतदाताओं के लिए लाभ का पिटारा खोला जाएगा  उनका ध्यान उस ओर है तो आश्चर्य नहीं है।

 

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