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हमारे ज्ञान के बिना विज्ञान आधार कार्ड में छपे फोटो की तरह अस्पष्ट होता है प्रकृति के कण-कण में परमात्मा विद्यमान हैं
महावीर अग्रवाल
मन्दसौर २४ नवंबर ;अभी तक; संपूर्ण प्रकृति परमात्मा का ही स्वरुप है। प्रकृति के कण-कण में परमात्मा विद्यमान है। नदियां भगवान की नाड़ियां हैं वृक्ष उनके रोम रोम हैं।बादल उनके केश और प्राणी मात्र उनके नख और मुख हैं। इसीलिए कहा गया है की प्रकृति की पूजा ही ईश्वर की पूजा है।
यह उद्गार निग्रहाचार्य श्री भागवतानंद गुरुजी ने श्री रामानुज कोट खानपुरा में श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ सप्ताह में व्यास पीठ से व्यक्त किए। आपने कहा कि यह जो विज्ञान है इसके मूल में हमारा ज्ञान ही है। बिना ज्ञान का विज्ञान आधार कार्ड में छपी फोटो की तरह अस्पष्ट होता है। पृथ्वी ब्रह्मांड का एक अंग है और संपूर्ण ब्रहमांड एकारवा नमक समुद्र में मग्न है। जिसे केवल भगवान ही देख सकते हैं यह सृष्टि परमात्मा की परछाई ही है। वे सूक्ष्म में भी हैं और स्थूल में भी है।
आपने कहा कि श्रीमद् भागवत पुराण हमें जीवन मरण के चक्र से बाहर निकालता है हमारे मरण शील जीवन को तत्वज्ञान कराता है। शुद्ध हृदय में परमात्मा का वास होता है,जिनके हृदय शुद्ध है देवों के देव महादेव शिव उन्हें प्रणाम करते हैं। भक्त ध्रुव को अपने धु्रव पद प्राप्ति की भी ग्लानि हुई कि उन्होंने परमात्मा को क्यों नहीं मांगा।
कथा में सायंकाल आरती के समय व्यास सम्मान और पोथी पूजन में सांसद सुधीर गुप्ता, शिक्षाविद रमेशचंद्र चन्द्रे, बालूसिंह सिसोदिया, प्रमोद तोषनीवाल, घनश्याम भावसार, कथा शुभारंभ सत्र में कृष्णचंद्र चिचानी महेंद्र दूरग, देवेश्वर जोशी, ब्रजेश जोशी, चारभुजा नाथ मंदिर पंच माहेश्वरी ट्रस्ट के पदाधिकारी सदस्यगण गोष्ठी मंडल के सदस्यगण आदि उपस्थित थे। प्रसादी के लाभार्थी अभिषेक पटवा और घनश्याम भावसार थे। पूजा विधि पं. सुदर्शन आचार्य व विद्वान ब्राह्मण पंडितों ने संपन्न कराई।
समिति प्रवक्ता सुरेश भावसार ने बताया कि 27 नवंबर को भागवत कथा का समापन होगा। प्रतिदिन दोपहर 12 से सायंकाल 4 बजे तक कथा का समय है। अंतिम एक घंटा चार से पांच प्रश्नोत्तरी का सत्र होता है। समिति ने धर्मालुजनों से कथा श्रवण का लाभ लेने का अनुरोध किया गया है।