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98 साल का संघ और 60 हजार शाखाएं, रा. स्व. संघ सुसंस्कार हेतु व्यक्तियों के निर्माण की फैक्ट्री है

 (*रमेशचन्द्र चन्द्रे*)
     मन्दसौर २० नवंबर ;अभी तक;  आज संघ का देश मे संचालन होते 98 साल हो गए है । इन वर्षों में देश मे संघ की 60 हजार शाखाएं संचालित है।आरएसएस के द्वितीय सर संघचालक गुरुजी माधवराव गोलवलकर ने कहा था कि-“संघ कार्य के लक्ष्य का अंतिम स्वरूप,हमारे समाज की पूर्ण संगठित अवस्था है  जिसमे  प्रत्येक व्यक्ति, आदर्श हिंदू मनुष्य तत्व की मूर्ति बनकर समाज के संगठित व्यक्ति का संजीव अंग होगा अर्थात संघ प्रत्येक व्यक्ति के जीवन एवं समाज में विलीन हो जाएगा।
        संघ की स्थापना वर्ष 1925 से लेकर 2023 तक 98 वर्ष पूर्ण होने के बाद कभी-कभी समाज को यह भ्रम होने लगता है कि संघ की जो शक्ति पहले दिखाई देती थी वह अब कम दिखाई देती है किंतु संघ का स्वरूप दिन पर दिन परिवर्तित होकर समाज के भिन्न-भिन्न क्षेत्र में विलीन हो गया है अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्वरूप “हवा” के समान हो गया है जिसका ना रूप है, ना गंध है, ना ही कोई आकार है, क्योंकि संघ एक राष्ट्रव्यापी विचार है किंतु जैसे कभी-कभी हवा भी  संगठित रूप से दिखाई देती है ठीक उसी तरह संघ भी कभी-कभी संगठित रूप में दिखाई देता है किंतु उसका संगठन रूप हमेशा रचनात्मक और निर्माण की प्रक्रिया से जुड़ा होता है विध्वंस शब्द इसकी “डिक्शनरी” में नहीं होता।
         आज वर्तमान में संघ एक राष्ट्रव्यापी हवा के रूप में है जो अखिल विश्व में व्याप्त है किंतु दिखाई नहीं देता परंतु उसकी अंतर निहित शक्तियां हर घटक को प्रभावित करती है। जिस प्रकार ऑक्सीजन कुछ क्षण के लिए भी समाप्त हो जाए तो प्राणी मात्र एवं पेड़ पौधों का जीवन दुभर हो जाएगा इसी तरह संघ का विचार विश्व से विलुप्त होता है तो विश्व में उसकी कमी ऑक्सीजन की तरह महसूस की जाएगी और यह ऑक्सीजन है- “हिंदुत्व”
       आरएसएस एक  निर्माण की फैक्ट्री है यहां से उत्पादित सामान कहाँ जाता है कैसे उपयोग में आता है इसकी चिंता संघ इसलिए नहीं करता क्योंकि इस फैक्ट्री में निर्मित सामान पूरी तरह विश्वसनीय होता है किंतु उसकी गारंटी-वारंटी नहीं होती है क्योंकि संघ का ऐसा मानना है कि संघ निर्जीव वस्तुओं का निर्माण नहीं करता वह संजीव एवं जीते जागते व्यक्तित्वों का निर्माण करता है जो सिर्फ मिट्टी का लौंदा मात्र नहीं है बल्कि एक जीवित इंसान है इसलिए उसके जीवन में समय, काल, परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तन संभव है वह दिशाहीन भी हो सकता है किंतु जो संस्कार वह देता है उस संस्कारों के प्रति उसका यह विश्वास होता है कि हमारे द्वारा निर्मित व्यक्ति विकट से विकट परिस्थिति में भी संतुलन बना सकता है  और इसी विश्वास के सहारे वह अपने संगठन का काम करता है।
       एक बार संघ के द्वितीय सरसंघचालक गुरुजी से पत्रकारों ने पूछा कि आप किस हेतु से संगठन करते हैं तो उन्होंने कहा कि, हमारा कोई हेतु नहीं है “हम केवल संगठन के लिए संगठन करते हैं” और यही कारण है कि संघ कभी भी अपने संगठित स्वरूप या संग्रहित शक्ति   के बारे में विचार नहीं करता वह नियमित शाखा चलाता है तथा प्रतिदिन व्यक्तियों का निर्माण करता है जिस प्रकार एक कारखाने में निर्मित सामान विभिन्न परिवारों में भिन्न-भिन्न उपयोग में आता है तथा अपना जीवन समाप्त कर देता है ठीक यही अवधारणा राष्ट्रीय और सामाजिक परिपेक्ष में संघ के स्वयंसेवकों की होती है कि वह देश के लिए जीता है और देश के लिए ही मर  कर अपना जीवन समाप्त कर देता है, उसे इस बात का तनिक भी विचार नहीं है कि, उसे किसके लिए काम करना है, वह तो केवल देश के लिए ही काम करता है और उसी के काम आता है
         जब जब देश और समाज पर प्राकृतिक आपदाएं आती है तथा उसकी एकता, अखंडता और संस्कृति पर आघात होता है तब तब संघ अपना संगठित स्वरूप प्रदर्शित करता है।
         इसलिए हो सकता है कि संघ का प्रत्यक्ष कार्य समाज में कम दिखाई देता हो किंतु वह किसानों में किसान संघ, मजदूर में मजदूर संघ, शिक्षकों में शिक्षक संघ, कर्मचारियों में राज्य कर्मचारी संघ, शिक्षा क्षेत्र में सरस्वती शिशु मंदिर और विद्या भारती एवं भारतीय शिक्षण मंडल, राजनीति में भाजपा, हिंदुत्व के लिए विश्व हिंदू परिषद, सामाजिक समस्या के लिए सामाजिक समरसता मंच, साहित्य में पांचजन्य एवं ऑर्गेनाइजर जैसी अनेक पत्र पत्रिकाएं, स्वदेशी की भावना के लिए स्वदेशी जागरण मंच विद्यार्थियों में विद्यार्थी परिषद स्त्री जागृति में राष्ट्र सेविका समिति, दुर्गा वाहिनी, वनवासियों में वनवासी कल्याण परिषद के साथ ही भिन्न-भिन्न  में क्षेत्र में विभिन्न संगठनों के माध्यम से एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न संगठनों के रूप में संपूर्ण विश्व में व्याप्त हो गया है।
         98 वर्ष की यात्रा में संघ ने राष्ट्र जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में प्रवेश किया है, इसलिए उसके प्रत्यक्ष स्वरूप पर नहीं जाकर उसकी अप्रत्यक्ष शक्तियों को आप महसूस करेंगे और आवश्यकता पड़ने पर यह समस्त शक्तियां, एकजुट होकर इस राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए सक्षम एवं समर्पित भाव से दिखाई देगी।

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