राजनीति

मंडे स्पेशल-MP की 5 सीटों पर रिश्तेदारों में रोचक मुकाबला:नर्मदापुरम में सगे भाई, देवतालाब से चाचा-भतीजे; सागर में जेठ-बहू आमने-सामने

मंडे स्पेशल-MP की 5 सीटों पर रिश्तेदारों में रोचक मुकाबला

मध्यप्रदेश में 17 नवंबर को होने वाले चुनाव के लिए भाजपा-कांग्रेस के उम्मीदवारों की तस्वीर लगभग साफ हो गई है। कांग्रेस ने 229 और भाजपा ने 228 सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। देवतालाब सीट से चाचा-भतीजे आमने-सामने हैं तो होशंगाबाद सीट पर सगे भाइयों के बीच सीधा मुकाबला हो रहा है।

5 ऐसी सीटें हैं, जहां सबसे रोचक मुकाबले होने जा रहे हैं। किसी सीट पर भाई-भाई, किसी पर चाचा-भतीजे तो किसी सीट पर समधी-समधन आमने-सामने हैं। इस पांचों सीटों में से 4 पर भाजपा का कब्जा है और 1 सीट पर कांग्रेस का।

पहले भाजपा में ही थे दोनों शर्मा बंधु
भाजपा ने 5 बार के विधायक डॉ. सीतासरन शर्मा को टिकट दिया है। सीतासरन पहली बार 1990 में विधायक बने थे। इसके बाद 1993 और 1998 का चुनाव जीते। अभी 2013 से लगातार विधायक हैं। साल 2014 से 2019 तक विधानसभा अध्यक्ष भी रहे हैं। कांग्रेस ने इस सीट से सीतासरन के सगे भाई गिरिजाशंकर को पहले ही टिकट देकर मुकाबले को रोचक बना दिया है। गिरिजाशंकर साल 2003 से 2013 तक भाजपा के टिकट पर विधायक रह चुके हैं। जनसंघ के समय से भाजपा में रहे। करीब 45 साल भाजपा में रहने के बाद 10 सितंबर को कांग्रेस जॉइन कर ली थी।

भाई के खिलाफ चुनाव लड़ने की बात पर गिरिजाशंकर ने कहा कि चुनाव को लेकर मेरी पूरी तैयारी है। हाईकमान ने टिकट घोषित होने से पहले ही मुझे आगाह कर दिया था। भाजपा मेरे भाई के नाम की घोषणा पहले कर देती तो मैं चुनाव नहीं लड़ता। कांग्रेस ने मुझे पहले ही टिकट दे दिया था। अब पीछे भी नहीं हटूंगा। पार्टी को जीत दिलाउंगा।

वहीं, सीतासरन ने अपने भाई के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले सवाल पर कहा, “मुकाबला कड़ा होगा। वैसा ही होगा जैसा चुनाव में होता है। पार्टी ने भरोसा जताया है तो पूरी ताकत के साथ चुनाव लड़ूंगा। यहां किसी व्यक्ति विशेष की लड़ाई नहीं है। विचारधारा की लड़ाई है।

पिछला चुनाव 1080 वोटों से जीते थे गिरीश
भाजपा ने 3 बार के विधायक और वर्तमान में विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम को टिकट दिया है। गिरीश इस सीट पर 2008 से लगातार विधायक हैं। पिछली बार देवतालाब सीट पर भाजपा-कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर हुई थी। गिरीश गौतम बीएसपी की सीमा सिंह सेंगर से 1080 वोट से चुनाव जीते थे। कांग्रेस की विद्यावती पटेल को 22% वोट मिले थे। गिरीश 2008 और 2013 का चुनाव करीब 3 हजार वोट के ही मार्जिन से जीते थे।

इस बार कांग्रेस ने इस सीट पर गिरीश के भतीजे पद्मेश गौतम को टिकट देकर मामले को रोचक बना दिया है।

इस बार भी इस सीट पर भाजपा, कांग्रेस का सीधा मुकाबला देखने को मिल सकता है। पद्मेश अपने चाचा गिरीश को कड़ी टक्कर दे सकते हैं। पद्मेश कांग्रेस में युवा नेता के तौर पर उभर कर सामने आए हैं। 2020 के निकाय चुनाव में जिला पंचायत का चुनाव जीते थे। उन्होंने गिरीश के बेटे राहुल गौतम को चुनाव हराया था। यही वजह रही कि कांग्रेस ने उन्हें टिकट दिया।

पार्टी कोई भी हो, विधायक जैन ही चुना जाता है

ये जैन बाहुल्य सीट है। इस सीट पर साल 1985 यानी पिछले 38 साल से जैन प्रत्याशी ही चुनाव जीतते आ रहे हैं। भाजपा ने 3 बार के विधायक शैलेंद्र जैन को टिकट दिया है। शैलेंद्र को चौथी बार भी मैदान में उतारा है। वहीं, कांग्रेस ने इस सीट पर शैलेंद्र से छोटे भाई सुनील की पत्नी निधि को टिकट देकर मुकाबले को रोचक बना दिया है। निधि साल 2020 के नगरीय चुनावों में महापौर का चुनाव लड़ चुकी हैं। निधि भाजपा की संगीता तिवारी से 12,665 वोटों से हार गई थीं।

अपने जेठ के खिलाफ चुनाव लड़ने के सवाल पर निधि का कहना है कि परिवार और राजनीति अलग-अलग हैं। मेरे जेठ बीजेपी में हैं। मैं कांग्रेस में हूं। मेरे पति सुनील जैन 1993 में कांग्रेस से देवरी से चुनाव जीते थे। हम लोग कांग्रेस की राजनीति में विश्वास रखते हैं। कांग्रेस की गांधीवादी विचारधारा से जुड़ी हूं। दोनों के अपने-अपने सिद्धांत हैं।

वहीं, बहू के खिलाफ चुनाव लड़ने पर शैलेंद्र जैन ने कहा कि बीजेपी मेरी मां है। मैं राजधर्म का पालन करूंगा। नगर निगम चुनाव में यह हालत बनी थी। तब मैंने बीजेपी का कार्य किया था। जबकि मेरे परिवार की सदस्य निधि चुनाव लड़ी थीं। मेरे लिए बीजेपी ही सर्वोपरि है। पिछले 15 सालों में सागर शहर का विकास ही मेरी जीत का आधार बनेगा।

महज 2,213 वोटों से जीते थे चाचा संजय
हरदा जिले की इस सीट पर भाजपा ने विधायक संजय शाह को टिकट दिया है। संजय टिमरनी विधानसभा सीट से 2008 से लगातार तीन बार के विधायक हैं। कांग्रेस ने इस सीट पर संजय के भतीजे अभिजीत को दोबारा मैदान में उतार दिया है। यहां पिछली बार भी मुकाबला रोचक था। टाइट-फाइट हुई थी। भतीजा अपने चाचा से महज 2,213 वोट के अंतर से हारा था। मकराई राजघराने के वंशज चाचा-भतीजे की ये जोड़ी दूसरी बार आमने-सामने है।

जिस समधी ने हराया, उससे फिर मुकाबला

भाजपा ने साल 2020 में कांग्रेस छोड़कर आईं इमरती देवी को टिकट दिया है। इमरती 2008 में पहली बार विधायक बनी थीं। साल 2020 तक डबरा से कांग्रेस की टिकट पर लगातार 3 बार विधायक रहीं। साल 2020 के उपचुनाव में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ीं। कांग्रेस ने इमरती के खिलाफ उनके समधी और वर्तमान विधायक सुरेश राजे को टिकट दिया है। इमरती, सुरेश राजे से चुनाव हार गई थीं। सुरेश पहले भाजपा में हुआ करते थे। तब इमरती कांग्रेस में थीं। इमरती के भाजपा में आते ही सुरेश कांग्रेस में शामिल हो गए थे।

ऐसा तीसरी बार है, जब इमरती और उनके समधी चुनाव में आमने-सामने हैं। साल 2013 में सुरेश भाजपा की टिकट पर इमरती से खिलाफ चुनाव लड़े थे। इसके बाद 2020 के उपचुनाव में एक बार फिर दोनों आमने-सामने आए। दोनों एक-दूसरे के धुर विरोधी माने जाते हैं, इसलिए ये मुकाबला रोचक होने वाला है।

दरअसल, सुरेश के भाई के बेटे मनीष की शादी इमरती के भाई की बेटी प्रतिभा से हुई है। इसके बाद ही दोनों समधी-समधन कहलाए। हालांकि इमरती सुरेश को अपना समधी मानने से साफ इनकार करती हैं। जबकि सुरेश स्वीकारते हैं कि वो इमरती के समधी हैं लेकिन, राजनीतिक जलन के चलते उन्होंने एक-दूसरे से रिश्ते खराब कर लिए हैं। दोनों का नाम एक-दूसरे के खिलाफ षड्यंत्रों में आता रहता है।

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