कांग्रेस के द्वय शहर और ग्रामीण जिलाध्यक्ष ने जमीन   विवाद का  लोक अदालत में परस्पर सुलह कर किया पटाक्षेप

मयंक शर्मा

खंडवा १० सितम्बर ;अभी तक;  राजनैतिक सियासत ने अक्सर ा भाई-भाई को लडाने या इनमें दरार डालने का काम किया है लेकिन आज शनिवार को कांग्रेस संगठन ने एक फैसले ने दो दिग्गजों के बीच चल रहे एक विवाद को लोक अदालत के जरिये  खत्म करवा दिया। खंडवा में वर्तमान शहर कांग्रेस अध्यक्ष और जिलाध्यक्ष के आपस में जमीन विवाद का केस 3 साल से न्यायालय में लंबित था। केस तब से चल रहा था, जब दोनों के पास पार्टी संगठन में कोई बड़ा दायित्व नहीं था।

मामला यूं है कि  डाॅ. मुनीश मिश्रा ने अजय ओझा के स्वामित्व वाली कृषि भूमि खरीदी थी। यह कृषि भूमि इंदौर रोड स्थित ग्राम पछाया में है। करीब 3 एकड़ जमीन थी, इसमें डेढ़ एकड़ जमीन की रजिस्ट्री ओझा ने मिश्रा के नाम करवा दी थी। लेकिन शेष डेढ़ एकड़ जमीन की रजिस्ट्री होना बाकी रह गई। ओझा परिवार में आपसी विवाद के कारण मामला उलझ गया। इस पर मिश्रा ने सौदा चिट्ठी के आधार पर अपने वकील के जरिये कोर्ट में केस दाखिल करवा दिया। सुनवाई के दौरान डॉ. मिश्रा के वकील ने सौदा चिट्ठी के आधार पर डेढ़ एकड़ जमीन की रजिस्ट्री करवाने का आग्रह किया। इस तरह करीब 3 साल से प्रकरण विचाराधीन रहा।
केस तब से चल रहा था, जब दोनों के पास पार्टी संगठन में कोई बड़ा दायित्व नहीं था। अब पार्टी ने चुनावी रणनीति संभालने के लिए दोनों  नेताओं को बड़ी जिम्मेदारी मिली है। दोनों नेताओं ने एक संगठन  में रहकर राजनीतिक कॅरियर को देखते हुए आपसी समन्वय बैठाना उचित समझा। इसलिए दोनों दिग्गज लोक अदालत की दहलीज चढ़े और कोर्ट में राजनीमा पेश किया।
बताया गया है कि इनमें सुलह के हिसाब से जिलाध्यक्ष अजय ओझा ने शेष डेढ़ एकड़ जमीन के बदले डॉ. मुनीश मिश्रा को जमीन का वर्तमान मूल्य चुकाना मान्य किया है। श्री ओझा ने मीडिया से कहाकि सुलह में यही उन्हें उचित लगा है।

यह अजूआ रहा कि 2 माह पहले शहर अध्यक्ष पद पर मिश्रा की नियुक्ति के कुछ हफ्ते बाद जिलाध्यक्ष पद पर ओझा की नियुक्ति हो गई थी। तब राजनीतिक गलियारों में चर्चा थी कि दो नेता एक जमीन के विवाद में आपस में लड़ रहे है,।देानों अध्यक्ष की परस्पर कानूनी संघर्ष के बीच कांग्रेस का वे कैसे करेगा। तब एक प्रेसवार्ता के दौरान डॉ. मिश्रा ने मजाकिया लहजे में कह दिया था कि, जमीन का विवाद तो भाई-भाई में रहता है। पार्टी ने दोनों को पद दे दिए तो क्या अब दोनों आपस में शादी कर ले ?
अब पार्टी में  दोनों नेताओं को बड़ी जिम्मेदारी मिलते ही इन्होने राजनीतिक कॅरियर को देखते हुए आपसी समन्वय बैठाना उचित समझा। इसलिए दोनों दिग्गज लोक अदालत की दहलीज चढ़े और कोर्ट में राजनीमा पेश किया।