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मंदसौर के गेहूं कांड में महिलाओं को सजा होने के परिप्रेक्ष्य में- *अपने परिवार की  महिलाओं को आर्थिक एवं राजनीतिक मामलों में भागीदार नहीं बनाना चाहिए*

*रमेशचन्द्र चन्द्रे*
  मन्दसौर १९ दिसंबर ;अभी तक;   भारत की 95% महिलाएं सामान्यतः घरेलू काम में लगी रहती है, भले ही वह पढ़ी लिखी हो किंतु उनका ज्यादातर दिमाग गृहस्थी के संचालन में ही चलता है इसी तरह जो शासकीय सेवा में काम करनेे वाली महिलाएं हैं, वह तो अपनी ड्यूटी पर भी बहुत ज्यादा कुशलता से काम नहीं कर पाती, क्योंकि उन पर घर परिवार की जिम्मेदारी का बोझ होता है।
       हमारा समाज एक पुरुष प्रधान समाज है, चाहे गरीब हो या कि अमीर हो, कर्मचारी हो या उद्योगपति हो, ज्यादातर स्थानों पर पुरुषों के निर्णय ही अंतिम निर्णय होते हैं।
       प्रॉपर्टी की खरीदारी बिक्री, विभिन्न कंपनियों के संचालन, पार्टनरशिप अथवा उद्योग- व्यापार सहित, पुरुष समाज सदैव सुविधा की दृष्टि से महिलाओं को पार्टनर बना देता है अथवा उसके नाम से खरीद- बिक्री करता है, जबकि इन सबसे उसका कोई लेना-देना नहीं होता। वह केवल हस्ताक्षर करने की मालिक होती है और पति की आज्ञाकारी होने के कारण, पति जहां कहता है, वहाँ हस्ताक्षर कर देती है, क्योंकि ज्यादा प्रश्न करने पर या तो उसे डांट पड़ती है या मार खानी पड़ती है इसलिए किसी भी प्रकार के विवादों को अवॉइड करने के हेतु वह, पति जहां कहता है, वहां हस्ताक्षर करती जाती  है।
       इसी तरह राजनीतिक क्षेत्र में 33% और 50% आरक्षण के कारण  महिलाओं को जबरदस्ती चुनाव लड़वाया जाता है, महिला आरक्षण के कारण  वह जनपद, जिला पंचायत, नगर पालिका, नगर परिषद की अध्यक्ष भी बन जाती है मंडी, बैंक इत्यादि स्थानीय संस्थाओं के अनेक दायित्व उसको मिल जाते हैं किंतु वह उन दायित्वों के अनुकूल योग्य हो या नहीं हो , वह अपने पति के संरक्षण में ही हर जगह हस्ताक्षर करती देती है।
       किंतु जब कभी सरकार और न्यायालय का  शिकंजा चलता है तो पति के कारनामों की सजा पत्नी को भी भोगना पड़ती है तथा पति के साथ-साथ उसे भी जेल जाना पड़ता है, जबकि उस अपराध से उसका कोई संबंध नहीं होता।
      इसलिए संपत्ति खरीदी में  टैक्स बचाने से लेकर के जहां-जहां भी महिलाओं के नाम का उपयोग करने से लाभ मिलता हो, उससे बचना चाहिए, क्योंकि घर की महिलाओं को दांव पर लगा देने से पूरा परिवार नुकसान की चपेट में आ जाता है। जैसे द्रोपदी को पांडवों ने दांव पर  लगाया तो महाभारत युद्ध हुआ और विनाश के दृश्य दिखाई दिए।
         इस तरह अपने घरेलू कार्य में संलग्न औरतें चाहे माँ हो, पत्नी हो, चाची हो, भाभी हो, मौसी हो,या बहन हो, इनके हितों की रक्षा को ध्यान रखते हुए ही इनको आगे बढ़ाना चाहिए अन्यथा गेहूं के साथ घुन भी पीस जाता है।

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