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1985 में जब जैन साध्वी पद्मश्री महासती चंदना ने कहा था कि  *यदि मैं लड़का होती तो आरएसएस का प्रचारक बनकर देश की सेवा करती* 

महावीर अग्रवाल
 मन्दसौर १६ दिसंबर ;अभी तक;    बात 1985 की है जब मैं शुजालपुर के सरस्वती विद्या मंदिर में प्राचार्य था वहां कांग्रेस के मध्य भारत प्रांत में वित्त मंत्री रहे श्री सौभाग्यमल जी  जैन निवास करते थे वह बड़े अध्ययनशील एवं चिंतक थे उनके पास करीब 5000 किताबों की लाइब्रेरी थी। वहां के सरस्वती शिशु मंदिर की संचालन समिति का नाम था शुजालपुर महाविद्यालय स्थापना  समिति इसके सचिव भाजपा के विधायक डॉक्टर  शैलकुमार शर्मा थे सर्वानुमति से यह निर्णय लिया गया की समिति के तत्वाधान में श्रीमान सौभाग्यमल जैन का नागरिक अभिनंदन करना चाहिए उस समय अभिनंदन समिति की टीम में मैं भी था निर्णय के अनुसार भव्य अभिनंदन समारोह आयोजित किया गया जिसमें महान कहानीकार जैनेंद्र कुमार दिल्ली से पधारे थे, तत्पश्चात भव्य अभिनंदन समारोह संपन्न हुआ
                              इसके बाद यह निर्णय लिया गया कि जैन साहब के अभिनंदन ग्रंथ के रूप में “*सौभाग्यिका*” किस नाम से स्मारिका का प्रकाशित होना चाहिए तदानुसार अभियान प्रारंभ हुआ और उस ग्रंथ के सहायतार्थ विज्ञापन हेतु  कुछ दिन बाद श्री सौभाग्यमल जी जैन का प्रवास बिहार और बंगाल प्रांत के लिए निश्चित हुआ। उन्होंने मुझसे कहा कि आप भी मेरे साथ चलिए।
        पश्चिम बंगाल में कोलकाता सहित कुछ स्थानों पर मिलने के  बाद हम बिहार प्रांत के पटना पहुंचे।
        बिहार प्रांत में नालंदा विश्वविद्यालय से कुछ दूर राजगृही(राजगिरी) नाम का स्थान है वहां पर एक विरायतन नमक स्थान है, जो श्वेतांबर स्थानकवासियों का है। उस समय उसके प्रमुख पूज्य अमर मुनि जी महाराज साहब थे और वीरायतन की दूसरी प्रमुख   महासती चंदना जी महाराज साहब थी।
     वीरायतन में हमारा 15 दिन रहने का कार्यक्रम था, एक जैन मुनि के साथ  प्रतिदिन पर्वतों की यात्रा करना और अध्ययन करना यही हमारा काम था।
       राजगिरी में वीरायतन के निकट राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की एक शाखा लगती थी मैं भी वहीं प्रतिदिन शाखा में में जाता था धीरे-धीरे वहां अच्छा परिचय हो गया।
        स्थानीय स्तर पर संघ के द्वारा शरद पूर्णिमा  का आयोजित होना था संघ के प्रमुख अधिकारियों ने मुझसे कहा कि- आप विरायतन में रहते हैं तो क्या पूज्य संत अमरमुनी जी हमारा मार्गदर्शन करने के लिए शाखा में आ सकते हैं तो मैंने उनसे कहा कि, उनसे मैं  निवेदन करूंगा तदानुसर मैंने उनसे  निवेदन किया किंतु उन्होंने स्वास्थ्य की समस्या बात कर इनकार कर दिया और स्वयं ही कहा कि चंदना जी को आमंत्रित करो।
         चूंकि शाखा में  स्त्रियों का प्रवेश वर्जित है इसलिए मैंने वहां, संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को कहा कि महासती चंदना जी बौद्धिक के लिए आ सकती है तो उन्होंने कहा कि यह तो शरद पूर्णिमा का कार्यक्रम है और यदि वह भी आती है तो बहुत स्वागत योग्य है।
      संघ के कुछ अधिकारियों के साथ  महासती चंदना जी से भेंट की और उन्हें आमंत्रण दिया, उन्होंने गुरुवर अमर मुनि जी की आज्ञा से कार्यक्रम में आने की स्वीकृति दे दी।
        निश्चित तिथि पर सायंकाल शरद पूर्णिमा का कार्यक्रम हुआ , शाखा लगी और महासती चंदना जी ने भी भगवा ध्वज को प्रणाम किया।
       *जब उन्हें बौद्धिक के लिए आमंत्रित किया गया तो उन्होंने संबोधन में कहा कि- परम पूजनीय भगवा ध्वज! एवं स्वयंसेवक बंधुओं! यह सुनकर सभी उपस्थित स्वयंसेवकों बांधो बड़ा आश्चर्य हुआ कि यह संबोधन तो संघ के व्यक्ति ही कर सकते हैं, इन्हें यह शैली कैसे याद हुई किंतु उन्होंने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि “साध्वी जीवन के पूर्व मेरा घर महाराष्ट्र में एक गांव में था तथा घर के पीछे ही संघ की शाखा लगती थी तथा मेरे अपने  कमरे की खिड़की से शाखा के कार्यक्रम प्रतिदिन देखती रहती थी। उस समय मेरी उम्र 13- 14 वर्ष की थी , शाखा का अनुशासन, खेल कहानियां और भाषण सुनकर के मेरा भी मन करता था कि, मैं भी शाखा में जाऊं किंतु वहां सब पुरुष और लड़के ही आते थे।*
        विशिष्ट कार्यक्रम में वहाँ जो भाषण होते थे, मेरे घर में बिना माइक के भी उनकी स्पष्ट आवाज आती थी, उनआईडियोलॉजी, हिंदुत्व की व्यापक अवधारणा से मैं अभीभूत हो जाती थी। यद्यपि मेरी उम्र उस समय 13- 14 वर्ष थी किंतु मेरा मानसिक विकास जैन धर्म के अध्ययन के कारण कुछ ज्यादा था इसलिए मुझे समझ में सब आता था।
       *15 वर्ष की उम्र में ही मैने जैन साध्वी के रूप में  दीक्षा ले ली और मैं भगवान महावीर की सेवा में तभी से काम कर रही हूं, उन्होंने कहा कि, यदि मैं लड़का होती तो प्रतिदिन शाखा में जाती है और हो सकता है मैं जैन साध्वी बनने के स्थान पर आरएसएस के प्रति समर्पित प्रचारक होकर राष्ट्र की सेवा करती।*
        इस कार्यक्रम में उस समय के प्रसिद्ध उद्योगपति श्री नवलमल जी फिरोदिया जो काइनेटिक टू व्हीलर के बहुत बड़े उत्पादक थे जिनके कारखाने पिथनपुर और  पुणे में भी थे तथा अन्य  साध्वी महाराज भी  उपस्थिति रही, जिन्हें यथायोग्य स्थान दिया गया।
 *जब बिहार के मुख्यमंत्री ने टांट किया*
       तीन-चार दिनों के बाद ही उस समय के बिहार के मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी दुबे का राजगिरी में कोई कार्यक्रम था तो वह संत अमर मुनि जी के दर्शन करने के लिए आए जहां उन्होंने अमर मुनी जी तथा महासती चंदना जी को प्रणाम किया 10 मिनट वार्तालाप के पश्चात उन्होंने महासती चंदना जी को कहा कि- आजकल आपतो महाराज साहब संघ की शाखा में जा रहे हैं तो, पूरे कॉन्फिडेंस के साथ महा सती जी ने उत्तर दिया कि- आरएसएस राष्ट्र धर्म के लिए काम करता है तथा उन्होंने मुझे वहां निमंत्रित कियाथा इसलिए वहां गई और मैं अपने बचपन से ही संघ की से प्रभावित हूं। यह सुनकर मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी दुबे निरुत्तर हो गए। शायद! उनके पूछने के टोन से ऐसा
 प्रतीत हो रहा था कि महा सती जी का शाखा में जाना है उनको अच्छा नहीं लगा होगा।
 *प्रस्तुति-रमेशचन्द्र चन्द्रे  मंदसौर*

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