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सिद्धचक्र विधान महामहोत्सव का समापन ; हुआ विश्व शांति महायज्ञ हुआ, रथयात्रा निकली, मुनि श्री के प्रवचन हुए

महावीर अग्रवाल 

मन्दसौर २७ मार्च ;अभी तक;  श्री दिगम्बर जैन महावीर जिनालय में आयोजित हुए दस दिवसीय सिद्धचक्र विधान महोत्सव का समापन विभिन्न कार्यक्रमों के साथ भव्य रूप में सम्पन्न हुआ।
                           डॉ. चंदा भरत कोठारी ने यह जानकारी देते हुए बताया कि श्री अभय अजमेरा परिवार द्वारा मुनि संघ के सानिध्य में महोत्सव का आयोजन किया गया।
                           समापन अवसर पर प्रातःकाल 6 बजे से दोप. 12.30 बजे तक लगातार विभिन्न धार्मिक क्रियाएं विधानाचार्य पण्डित श्री अरविंद जैन द्वारा सम्पन्न कराई गई। सुबह अभिषेक, शांतिधारा, नित्य पूजन के पश्चात विश्वशांति महायज्ञ का आयोजन जिनालय परिसर में हुआ जिसमें बड़ी संख्या में धर्मालुजनों ने सम्मिलित होकर यज्ञ में मंत्रोच्चार के साथ आहुतियां प्रदान की।
                         पश्चात जिनालय परिसर से भगवान महावीर स्वामी की रथयात्रा निकाली गई जो शुक्ला चौक, घण्टाघर, सदर बाजार, उतारा धानमंडी, बड़ा चौक व गणपति चौक होते हुए जिनालय पहुंची जहाँ विशाल धर्मसभा का आयोजन हुआ।
                            धर्मसभा को संबोधित करते हुए मुनिश्री प्रशमसागरजी महाराज ने कहा कि जिनेन्द्र देशना हमारे लिये आत्म कल्याण में सहायक है। भगवान योग्य पात्र के लिये योग्य द्वार खोलते हैं। प्रकृति भी आपकी योग्यता अनुसार आपको प्रदान करती है। पानी जब बरसता है तो पहाड़ रिक्त रह जाते हैं व नदियाँ पानी से भर जाती है उसी प्रकार अहंकार व मिथ्यावाद में डूबे व्यक्तियों के लिए जिनवाणी का नीर काम नहीं आता। भगवान प्राणी मात्र के कल्याण की सोचते हैं। आपने कहा धर्मात्मा व्यक्ति पाषाण से भगवान और आत्मा से परमात्मा का साक्षात्कार कर सकता है। मुनिश्री ने कहा दिगम्बर संत के पास यदि एक कौड़ी भी हो तो वह कौड़ी का हो जाता है और मनुष्य के पास यदि एक कौड़ी भी नहीं हो तो वह कौड़ी का हो जाता है। आपने कहा अपनी यश कीर्ति के लिए संतगणों की सेवा सुश्रुषा करें।
मंच पर मुनिश्री संयतसागरजी, मुनि श्री साध्यसागरजी व मुनि श्री शील सागरजी महाराज भी विराजमान थे।
प्रवचन पश्चात् भगवान महावीर स्वामी की प्रतिमा का जलाभिषेक किया गया। श्रद्धालुओं ने अभिषेक का गंधोदक मस्तक पर लगाकर स्वयं को धन्य किया।
इस अवसर पर विधान मण्डप में रखे अभिमंत्रित दस मंगलकलश भी पुण्यार्जकों ने प्राप्त किए।
महावीर जिनालय संरक्षक शांतिलाल बड़जात्या ने बताया मुनिसंघ का विहार बही पार्श्वनाथ चौपाटी के लिए हो गया है।

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