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अ.भा. साहित्य परिषद की महिला काव्य गोष्ठी सम्पन्न

महावीर अग्रवाल 

मन्दसौर ८ मार्च ;अभी तक;  अखिल भारतीय साहित्य परिषद इकाई मंदसौर की काव्य गोष्ठी महिला दिवस पर मातृशक्ति को सम्मान प्रदान करते हुए नवोदित कवियत्री अनुष्का मांदलिया की अध्यक्षता एवं श्रीमती मोना छाबड़ा के मुख्य आतिथ्य, श्रीमती चन्दा डांगी, नन्ही बिटिया पूर्वी मेहता एवं श्री अजय डांगी, नरेन्द्रसिंह राणावत, नन्दकिशोर राठौर, राजेन्द्र तिवारी, नरेन्द्र भावसार, विजय अग्निहोत्री, धु्रव जैन, गायक चेतन व्यास के सानिध्य में मेडि प्वाइंट गोल चौराहा पर सम्पन्न हुई।
                                  अध्यक्षीय उद्बोधन में अनुष्का मांदलिया ने कहा कि आज महाशिवरात्रि एवं अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस एक साथ है। अर्द्ध नारीश्वर स्वरूप में शिव की पूजा महिलाओं का सबसे बड़ा सम्मान जो प्राचीन काल से हो रहा और एक दिवस नहीं सम्पूर्ण जीवन नारी सम्मान का सूचक है। हम अपने स्वधर्म का पालन करें। सम्पूर्ण जीवन नारी एक दिवसीय नहीं सम्पूर्ण जीवन सम्मान करें। अनुष्का ने ‘‘समाज में पुरूष प्रधान मानसिकता पर व्यंग्य करते हुए कविता ‘‘नारी के माध्यम से नर आता है, पर नारी को ही आंख दिखाता है’’। नारी के सम्मान में नारे आज लगाते है, पर एक बेटा तो आज जरूर चाहते हैं।‘‘ सुनाई।
                                श्रीमती मोना छाबड़ा ने औरत होने का दर्द अपनी कविताओं में उकेरा ‘‘चांद छूने की हसरत लेकर, चांद सी रोटी बनाती हूॅ मैं औरत हूॅ’’, अपना घर बसाने के लिये, अपने ही घर से विदा लेती हूॅ, मैं औरत हूूॅ।
                                 श्रीमती चंदा डांगी ने महिलाओं की मातृत्व अनिवार्यता को रेखांकित करते हुए कविता ‘‘बीज हवा में फल फूल नहीं सकता, धरती की कोख के सिवा वह कहीं उग नहीं सकता’’ सुनाई। श्री अजय डांगी ने कविता ‘‘लड़की हंसती है, लड़की रोती है लड़की कितने सपने बुनती है’’ सुनाकर बेटियों की विचारों की उड़ान को रेखांकित किया।
                                 नंदकिशोर राठौर ने बेटियों की स्थिति को रेखांकित करते हुए कविता ‘‘यूं तो हर घर की पहचान है बेटियाँ, पर अपने ही घर की मेहमान बेटियां’’ सुनाई। नरेन्द्र भावसार ने ‘‘स्त्री पतंग नहीं, स्त्री डोर भी नहीं, वह तो है अनंत आकाश, सभी ग्रहों को अपने में समेटे हुए’’ सुनाते हुए महिलाओं की परिवार में समग्रता का चित्रण किया। विजय अग्निहोत्री ने कवि हरिओम बरसोलिया के निधन के बाद एक साथी के बिछड़ने के भाव वाली कविता ‘‘ साथी तुमसे दूर मुझे अकेले रहना है, जो भी हो सुख दुख अकेले ही सहना है’’ सुनाई।
                                  नरेन्द्रसिंह राणावत ने गीत ‘‘तुम्हें क्या बताऊ के तु मेरे क्या हो, मेरी जिंदगी का तुम्ही बागवां हो’’ सुनाया। राजेन्द्र तिवारी ने परम सत्ता की मौजूदगी का एहसास कराने वाला गीत ‘‘होगा मंजूर वही, जो मंजूर उसे होगा सुनाया। धु्रव जैन ने ‘‘मैं अच्छा हूॅ मगर मुझसे अच्छी है तू हो गई बड़ी पर अभी बच्ची है तू’ श्रृंगार गीत सुनाया। नन्हीं पूर्वी मेहता ने ‘‘अच्युतम केशवम कृष्ण दामोदरम‘‘श्लोक सुनाकर वातावरण को भक्तिमय कर दिया। चेतन व्यास ने गीत ‘‘कुछ भी नहीं है तेरा दो गज जमी है तेरी‘‘ सुनाया। नरेन्द्र त्रिवेदी ने नारी के वर्तमान स्वरूप पर कविता ‘‘मैं आज की नारी हूॅ, पढ़कर जिसे गर्व महसूस करो, वो इतिहास बनाने वाली हूॅ, सुनाई।
                                    कार्यक्रम की शुरूआत राजेन्द्र तिवारी द्वारा सरस्वती वंदना से हुई। कार्यक्रम का संचालन नरेन्द्र भावसार ने किया व आभार नंदकिशोर राठौर ने माना।

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